महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद भड़क गया है। आज इस विवाद ने हिंसक रूप ले लिया है। कर्नाटक में महाराष्ट्र की बस में तोड़फोड़ की गई। इस घटना पर एनसीपी नेता जितेंद्र आव्हाड ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बोम्मई को चेतावनी दी। आव्हाड ने कहा है कि यदि महाराष्ट्र को टुकड़े-टुकड़े करना हो तो सब कुछ राख हो जायेगा। आव्हाड ने कहा, “अगर आप हमारी बसों को तोड़ते हैं, तो क्या हम आपकी बसों को नहीं तोड़ सकते? यह मत सोचिए कि हमारे हाथों में चूड़ियां हैं। अगर आप पूरे कर्नाटक में मराठी लोगों का प्रतिशत देखें तो यहां 25 फीसदी, 100 फीसदी हैं। बंगलौर से ज्यादा लोग मुंबई में हैं। हम उनका ख्याल रखते हैं।
हमारा मराठी आदमी ही उनका इडली डोसा खाने जाता है। तो क्या बोम्मई इस रिश्ते को तोड़ना चाहते हैं? महाराष्ट्र को अस्थिर कर रहा है। यह महाराष्ट्र के हित में नहीं है। तो अगर मेरी तरह किसी व्यक्ति को पता चल जाए कि महाराष्ट्र पांच टुकड़ों में बंटने वाला है, तो सब कुछ राख हो जाएगा।’ मुझे लगता है कि पीएम को वास्तव में बोम्मई को शांत रहने के लिए कहना चाहिए था। इतना आक्रामक होने की जरूरत नहीं है। यह विवाद आज का नहीं 1946 से शुरू हुआ था। किसी राज्य का मुख्यमंत्री इस तरह की बात कैसे कर सकता है जब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया गया है। आव्हाड ने यह भी कहा कि जब मामला चल रहा हो तो आपका इस तरह का बयान देना गलत है। यह दिखाना सरकार का काम है कि महाराष्ट्र का हर मराठी व्यक्ति वहां का है।
बाबासाहेब अंबेडकर के संविधान से ही राज्यों का पुनर्गठन हुआ। भाषा पर प्रांत गठन 1956 में किया गया था। इसके अनुसार महाराष्ट्र में पहला आंदोलन मराठी साहित्य सम्मेलन में हुआ। इसकी अध्यक्षता जतरम मडगुलकर ने की। उन्होंने संकल्प लिया था कि महाराष्ट्र को बिदरी, भाल्की, कारवार, बेलगाम और मुंबई के साथ मिलाना चाहिए। इसके लिए कई लोगों की जान गई लेकिन महाराष्ट्र को सिर्फ मुंबई मिली। बेलगाम के लोग तब से लड़ रहे हैं। हम उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकते। सरकार का यह कहना जरूरी है कि सभी मराठी लोग उनके साथ खड़े हैं, उन्होंने शिंदे-फडणवीस सरकार पर भी निशाना साधा।
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