Juhu Beache Story: उस समय रात के ठीक १ बज रहे थे. जुहू की वह सड़क बिलकुल शांत थी .रोड पर लगी लाईट की रौशनी चारो तरफ फैली हुई थी. मै धीरे धीरे सड़क पर चलते हुए जुहू बीच के पास आ गया. सामने बिशाल समुद्र और उसमें उठती हुई ऊँची ऊँची लहरें. मैं आहिस्ता -आहिस्ता चौपाटी की रेत पर चलता हुआ आगे बढ़ रहा था. चारों तरफ सन्नाटा, आवाज आ रही थी तो आवारा घुमने वाले कुत्तो के भोकने की या फिर रेत में बिल बनाकर रहने वाले कीड़ों की चिक चिक. कभी कभी समुंदर में उठ रही लहरों के आपस में टकराने की आवाज सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते थे .
कुछ घंटे पहले शाम को जब यहाँ आया था तो कितनी चहल पहल थी. लहरों के बीच शैलानियो की मस्ती, खिलौने, गुब्बारे और चना कुरमुरा बेचने वालो की हर तरफ से आती आवाज, जगमगाती पाव भाजी की दुकानें, पानी पूरी की दुकानों पर गोलगप्पों का आनंद लेते लड़के और लड़कियां, बालुओं के बीच अटखेलिया करते छोटे छोटे बच्चे पूरे चौपाटी पर हर तरफ भीड़ और मौज मस्ती, लेकिन अब इस समय कही कुछ भी नहीं शिवाय समुंदर की लहरों के.
मैं धीरे धीरे कदमो को आगे बढाने लगा तभी मेरी नजर किनारे पर रखे उन पत्थरों पर पड़ी जहा शाम को लिपटे हुए थे कई प्रेमी जोड़े जो अपने पाक नापाक भावनाओ की जीवंत दुनिया बना रहे थे. उत्तर प्रदेश के एक गाव से आया हुआ मैं वह दृश्य देखकर काफी हैरत में पड़ गया था कि यह शहर प्यार करने की इतनी आजादी देता है. खैर इनमे से अब कुछ भी नहीं है इस समय यहाँ. अचानक से मेरी नजर समुद्र के बीच दिखाई दे रही रोशनी पर पड़ी जो लहरों के साथ ऊपर नीचे हो रही थी. शायद कोई जहाज या पनडुब्बी होगा यह सोचकर याद आ गया फिल्मो का वह दृश्य जब कोई स्मगलर समुद्री जहाज से रात में सोना या फिर हथियार लेकर आता है. फिर लहरों के बीच ही हथियार और सोने की अदला बदली होती है. क्या वाकई में ये लोग भी वही हैं, अगर हैं तो फिर कितने जीवट वाले होते हैं ये लोग. अथाह समुंदर और उसके बीच जहाजों से चलकर कालाबाजारी, खैर इनकी जिंदगी की फितरत ही ऐसी होती है. और ऐसे लोगों पर नजर रखने के लिए अपने अदम्य साहस के साथ हरदम डटे रहते है हमारे नौसैनिक . खैर ऐसी नाजाने कितनी ही कहानियां औए लंगर दफ़न है इस विशाल समुंदर के सीने में फिर भी मर्यादा के साथ अपनी जगह पर शांत पसरा हुआ है लहरों के साथ. कितना विशाल ह्रदय है इसका.
समुद्र के प्रति एक आश्था सी मन में होने लगी. तभी ऊपर एक हवाई जहाज की तेज आवाज ने मेरे विचार श्रंखला को तोड़ दिया. अब वहा से मुड़कर मै धीरे धीरे सड़क की ओर बढ़ने लगा. सब कुछ शांत कही कोई आवाज नहीं. आवारा कुत्ते भी अब जाकर कही सो गए थे .मैं जैसे ही सड़क पर आया मेरी नजर सामने पोमग्रेव होटल के उस कमरे पर पड़ी जिसमे लाईट जल रही थी. शायद इस समय भी उस कमरे में लोग जाग रहे थे. लोग कहते हैं की मुंबई कभी नहीं सोती लेकिन इस समय मै और होटल के उस कमरे से आ रही रोशनी इस बात का गवाह थे की मुंबई सोती है भले ही कुछ देर के लिए. यही सब सोचते हुए मैं सड़क पर चल ही रहा था कि गश्त लगा रही पुलिस की एक गाड़ी मरे बगल से हॉर्न बजाते हुए गुजरी. मेरी बिचार श्रृखला एक बार फिर टूटी. रात के तीन बज चुके थे और मुझे लगा कि मेरी मौजूदगी शायद पुलिस को अच्छा नहीं लगे. मैं वहा से सीधे रेलवे स्टेशन की ओर चल दिया.
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