मराठवाड़ा: महाराष्ट्र की स्थानीय स्वराज्य चुनावों में फैमिली पॉलिटिक्स का प्रभाव सबसे अधिक नजर आ रहा है। जालना, परभणी, हिंगोली, बीड़ और संभाजीनगर जिलों में मंत्री और विधायक अपने परिवार के सदस्यों को चुनावी मैदान में उतारकर राजनीतिक कनेक्शन मजबूत कर रहे हैं। इन चुनावों में मंत्रियों और विधायकों की संतान, पत्नी, बहन, बहन का पति और भतीजे-भतीजी को बड़े पैमाने पर उम्मीदवार बनाया गया है। (Maharashtra elections)
मराठवाड़ा के नगरपालिकाओं के चुनावों में इस बार कई नेताओं के परिवार सक्रिय हैं। उदाहरण के लिए, अब्दुल सत्तार, संतोष बांगर, राजेश विटेकर और नारायण कुचे के परिवार के सदस्य विभिन्न वार्डों से चुनाव लड़ रहे हैं। चुनावी प्रक्रिया में यह स्पष्ट दिखाई दिया कि पार्टी नेतृत्व ने सगे-संबंधियों को प्राथमिकता दी।
कुछ मामलों में विधायक और पूर्व विधायक ने अपने बच्चों को नगराध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतारा है। कई जगहों पर एक ही परिवार से नगराध्यक्ष और नगरसेवक दोनों पदों के लिए उम्मीदवार मैदान में हैं। इससे स्पष्ट है कि मराठवाड़ा में राजनीतिक वर्चस्व बनाए रखने के लिए परिवारिक रणनीति अपनाई जा रही है।
चुनाव में उम्मीदवारों के नामांकन की प्रक्रिया के दौरान यह भी देखा गया कि हर पार्टी ने अपने नेताओं के परिवार को प्राथमिकता दी, चाहे वह पत्नी हो, बेटा हो, भतीजा या बहन। इससे चुनावी मैदान में पारिवारिक दबदबे की झलक मिल रही है।
महाराष्ट्र की स्थानीय निकाय चुनाव 2 दिसंबर को होने वाले हैं और 3 दिसंबर को परिणाम घोषित होंगे। पूरे राज्य में चुनावी तैयारियां जोरों पर हैं, लेकिन मराठवाड़ा में फैमिली पॉलिटिक्स की चर्चा सबसे अधिक है। इस बार के चुनाव यह भी दर्शाते हैं कि राज्य के कई हिस्सों में राजनीतिक परिवार अपने प्रभाव को बरकरार रखने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। (Maharashtra elections)
मराठवाड़ा में इस प्रकार के चुनावी रुझान से यह भी संकेत मिलता है कि स्थानीय राजनीति में परिवारिक कनेक्शन और जातिगत समीकरणों का बड़ा महत्व है। भविष्य में भी इसी तरह की रणनीतियों के चलते कई जिलों में पारिवारिक दबदबा देखने को मिल सकता है। (Maharashtra elections)
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