पालघर, महाराष्ट्र, 14 दिसंबर 2025 – महाराष्ट्र के पालघर जिले की अदालत ने 1991 में वानवासी कल्याण आश्रम पर हुए हमले के मामले में अंतिम बचे आरोपी सत्वा लडक्या भगत को बरी कर दिया है। इस निर्णय के साथ ही 33 वर्षों से लंबित यह कानूनी लड़ाई आखिरकार समाप्त हो गई। (Maharashtra News)
मामला 14 अगस्त 1991 का है, जब लगभग 150 लोगों की भीड़ ने वानवासी कल्याण आश्रम पर हमला किया था। हमले में उस समय के प्रबंधक महादेव जयराम जोशी गंभीर रूप से घायल हुए थे और आश्रम की संपत्ति को भी व्यापक नुकसान पहुंचा था। इस मामले में कई सालों तक जांच और कानूनी प्रक्रिया चलती रही, लेकिन आरोपी भगत के खिलाफ सबूतों की कमी और गवाहों की पहचान में अस्पष्टता के कारण मामले में ठोस निर्णय नहीं हो पाया था।
सुनवाई के दौरान अदालत के जज ए.वी. चौधरी इनामदार ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी सत्वा भगत को हमले से जोड़ने में असफल रहा। गवाहों के बयान यह साबित करने में सक्षम नहीं थे कि भगत ने इस हमले में प्रत्यक्ष भाग लिया था। अदालत ने यह भी नोट किया कि सबूत पर्याप्त और विश्वसनीय नहीं थे, इसलिए न्यायसंगत निर्णय में आरोपी को बरी करना अनिवार्य था।
अदालत ने कहा कि किसी भी आरोपी के खिलाफ स्पष्ट और ठोस प्रमाण होना आवश्यक है। भगत के मामले में, गवाहों के बयान में असंगतियां और घटनास्थल पर आरोपी की भूमिका साबित करने में कमी थी। इसलिए न्यायालय ने उसे सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।
33 साल पुराना यह मामला महाराष्ट्र में कानूनी प्रक्रिया की लंबी अवधि का उदाहरण है। इस मामले ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया और समय-समय पर विवाद और मीडिया चर्चा का विषय भी बना रहा। हालांकि, आज का निर्णय प्रभावित पक्षों और आश्रम के अधिकारियों के लिए एक कानूनी और मानसिक राहत लेकर आया है।
स्थानिक समाचार स्रोतों के अनुसार, वानवासी कल्याण आश्रम के प्रशासन ने अदालत के फैसले को स्वीकार किया और कहा कि वे न्याय व्यवस्था पर भरोसा रखते हैं। आश्रम के सदस्यों ने भी कहा कि इस निर्णय के साथ आश्रम की सुरक्षा और सामान्य संचालन में अब कोई कानूनी बाधा नहीं है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला भारतीय न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता और सबूतों पर आधारित निर्णय की अहमियत को दर्शाता है। उन्होंने यह भी कहा कि मामले की लंबी सुनवाई ने यह स्पष्ट किया कि किसी भी मामले में आरोपी की सुरक्षा और कानूनी प्रक्रिया की प्राथमिकता हमेशा सर्वोपरि होती है। (Maharashtra News)
इस प्रकार, 1991 के उस दुखद घटना से जुड़े मामले में न्यायालय ने अंतिम निर्णय देते हुए आरोपी को बरी किया और 33 साल पुरानी कानूनी जटिलता को समाप्त किया। अब आश्रम प्रशासन और प्रभावित लोग अपने दैनिक जीवन और कार्यों की ओर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। (Maharashtra News)
Also Read: Metro Expansion: मेट्रो विस्तार से लेकर मुंबई 3.0 तक अगले दो दशकों के लिए MMRDA का विज़न