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Maharashtra Turbulence: महाराष्ट्र में बड़ा राजनीतिक उलटफेर! भाजपा को तगड़ा झटका

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Maharashtra Turbulence: महाराष्ट्र में बड़ा राजनीतिक उलटफेर! भाजपा को तगड़ा झटका

महाराष्ट्र में इस समय स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं के चुनावों की जोरदार तैयारी चल रही है। चुनावी माहौल के बीच लगातार दल-बदल की लहर देखने को मिल रही है, जिससे राज्य की राजनीतिक तस्वीर तेजी से बदल रही है। महायुति सरकार के भीतर भी असंतोष बढ़ता दिखाई दे रहा है। (Maharashtra Turbulence)

अब भाजपा को बड़ा झटका लगने की बात सामने आई है, खासकर तब जब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे दिल्ली दौरे से लौटते ही कई घटनाओं ने राजनीतिक हलचल तेज कर दी।

चुनाव नज़दीक आते ही विभिन्न दलों के नेता अपने राजनीतिक भविष्य को ध्यान में रखते हुए नए-नए निर्णय ले रहे हैं। महाविकास आघाड़ी के कई नेता और पदाधिकारी पहले ही महायुति में शामिल हो चुके हैं। लेकिन इस बीच एक बड़ा मोड़ तब आया जब भाजपा ने अपने ही सहयोगी दलों—शिवसेना (शिंदे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजित पवार गुट)—को अप्रत्यक्ष रूप से झटका दिया। दोनों गुटों के कई नेता भाजपा में शामिल होते दिख रहे हैं, जिसके कारण महायुति के अंदर असंतोष और अविश्वास की हवा बन रही है। (Maharashtra Turbulence)

सबसे अधिक नाराज़गी एकनाथ शिंदे की शिवसेना में देखी जा रही है। शिंदे गुट का कहना है कि भाजपा लगातार उनके नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर रही है, जबकि वे खुद महायुति की मजबूती और एकजुटता की बात करते हैं। इस स्थिति ने गठबंधन में तनाव बढ़ा दिया है। शिंदे गुट को यह डर सताने लगा है कि अगर ऐसी ही “इनकमिंग” जारी रही, तो उनकी ताकत कमजोर पड़ सकती है और भविष्य के चुनाव, खासकर मुंबई महानगरपालिका और अन्य स्थानीय संस्थाओं के चुनाव, प्रभावित हो सकते हैं।

नाराज़गी का सीधा संकेत तब मिला जब शिंदे गुट के सभी मंत्रियों ने हाल ही में आयोजित मंत्रिमंडल बैठक का बहिष्कार कर दिया। यह कदम बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि सरकार का हिस्सा होने के बावजूद किसी गुट का सामूहिक रूप से बैठक से दूर रहना गठबंधन में गहरी दरार की ओर इशारा करता है। यह बहिष्कार सिर्फ एक विरोध नहीं, बल्कि भाजपा को एक चेतावनी भी माना जा रहा है कि सहयोगी दलों की अनदेखी अब सहन नहीं की जाएगी।

अजित पवार गुट भी समान परिस्थितियों से गुजर रहा है। उनके कई कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हो रहे हैं, जिससे उनके गुट में भी बेचैनी बढ़ी है। हालांकि अजित पवार सार्वजनिक रूप से गठबंधन को मजबूत बताने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनकी पार्टी असुरक्षित महसूस कर रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि भाजपा अपने सहयोगियों को उचित स्थान और सम्मान नहीं देती, तो यह गठबंधन भविष्य में कमजोर हो सकता है। स्थानीय निकाय चुनावों में सीट बंटवारा और पार्टी की मजबूती सबसे बड़ा मुद्दा है, और ऐसे समय में सहयोगी दलों के नेताओं का भाजपा में जाना महायुति के लिए खतरे की घंटी है।

कुल मिलाकर, महाराष्ट्र की राजनीति में चुनावों से पहले एक बड़ा ग्रहण दिखाई दे रहा है। भाजपा की रणनीति और सहयोगी दलों की नाराज़गी आने वाले दिनों में और बड़े राजनीतिक बदलाव ला सकती है। सभी की निगाहें अब इस पर टिकी हैं कि महायुति इस संकट को कैसे संभालेगी और क्या गठबंधन भविष्य के चुनावों तक intact रह पाएगा या नहीं। (Maharashtra Turbulence)

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