मुंबई: उपनगरीय लोकल ट्रेनों की भयावह भीड़ के बीच दरवाज़े पर खड़े होकर यात्रा करना आम बात है। वर्षों से रेलवे प्रशासन इस स्थिति को यात्रियों की “लापरवाही” बताकर दुर्घटना मामलों में मुआवज़ा देने से बचता रहा है। लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए साफ कर दिया है कि लोकल ट्रेन के दरवाज़े पर खड़े होना लापरवाही नहीं माना जा सकता, क्योंकि मुंबई की लोकल परिस्थितियों में यह कई यात्रियों की मजबूरी है। इस फैसले के साथ ही मृतक यात्री के परिजनों को मुआवज़ा देने का रास्ता साफ हो गया है। (Mumbai Local Train)
कोर्ट ने खिंची रेलवे की लगाम
हाईकोर्ट ने कहा कि रेलवे उपनगरीय ट्रेनों में प्रतिदिन लाखों लोग सफर करते हैं और भीड़ इतनी होती है कि कई बार यात्रियों को डिब्बे के अंदर जगह ही नहीं मिलती। ऐसे में दरवाज़े के पास खड़े होकर यात्रा करना मजबूरी है, न कि लापरवाही। कोर्ट ने टिप्पणी की कि रेलवे प्रशासन का यह तर्क उचित नहीं है कि दरवाज़े पर खड़ा यात्री दुर्घटना का “खुद जिम्मेदार” होता है।
न्यायालय ने कहा कि जब रेलवे उचित भीड़ प्रबंधन और पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था उपलब्ध नहीं करा पाती, तब किसी यात्री को दोषी ठहराना न्यायसंगत नहीं हो सकता। मुंबई जैसी महानगरी में लोकल ट्रेनें जीवनरेखा हैं और वास्तविक स्थिति वही है जो हम रोज़ देखते हैं—चढ़ने की जगह नहीं, पकड़ने की जगह नहीं और अंदर घुसने का कोई रास्ता नहीं। (Mumbai Local Train)
मौजूदा मामले में रेलवे की दलील खारिज
जिस मामले में यह निर्णय आया, उसमें एक यात्री लोकल ट्रेन के दरवाज़े पर खड़ा था और धक्का लगने के कारण नीचे गिरकर उसकी मौत हो गई थी। रेलवे ने मुआवज़ा देने से इनकार करते हुए कहा था कि यात्री “लापरवाह” था क्योंकि वह दरवाज़े पर खड़ा था।
ट्रिब्यूनल ने पहले ही मृतक के परिजनों के लिए मुआवज़े का आदेश दिया था, जिसे रेलवे ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। लेकिन हाईकोर्ट ने ट्रिब्यूनल का फैसला बरकरार रखते हुए रेलवे प्रशासन की दलीलें खारिज कर दीं।
हाईकोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ
भीड़ के कारण दरवाज़े पर खड़ा होना मजबूरी है, गलती नहीं।
यात्री की मौत ‘अकस्मात दुर्घटना’ की श्रेणी में आती है।
रेलवे को सुरक्षा और भीड़ प्रबंधन की जिम्मेदारी निभानी होगी।
पीड़ित परिवार को मुआवज़ा मिलने का हक है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि जब रेलवे स्वयं भीड़ को नियंत्रित नहीं कर पाती और सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होती, तब किसी यात्री को दोष देना अनुचित है। दुर्घटना में उसकी भूमिका को “स्व-लापरवाही” बताना वास्तविकता से दूर है।
मुंबई लोकल की वास्तविक तस्वीर
मुंबई की लोकल ट्रेनों में रोज़ाना 70 लाख से ज्यादा लोग सफर करते हैं। पिक ऑवर में हालत ऐसी होती है कि यात्री प्लेटफॉर्म से ही धक्का देकर डिब्बे में घुसते हैं या दरवाज़े पर ही लटककर सफर करना पड़ता है। यह प्रणालीगत समस्या है, न कि यात्रियों की गलती। (Mumbai Local Train)
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