मुंबई, जो महाराष्ट्र की सांस्कृतिक और आर्थिक राजधानी है, वहां मराठी भाषा के स्कूलों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। यह स्थिति तब है जब सरकार मराठी भाषा को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं और नीतियां लागू कर रही है। मराठी, जो राज्य की मातृभाषा है और जिसकी जड़ें महाराष्ट्र की परंपरा और इतिहास में गहरी हैं, अब शहर के स्कूलों में धीरे-धीरे सिमटती जा रही है।
गिरावट के पीछे की वजहें
विशेषज्ञों का मानना है कि मराठी माध्यम के स्कूलों की घटती संख्या के पीछे कई कारण हैं। एक बड़ा कारण अभिभावकों की बदलती प्राथमिकताएं हैं। आजकल अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में दाखिला दिलाना चाहते हैं, ताकि वे भविष्य में बेहतर करियर विकल्प चुन सकें। वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अंग्रेजी को सफलता की भाषा माना जाने लगा है, जिसके कारण मराठी स्कूलों की मांग कम होती जा रही है।
इसके अलावा, मराठी माध्यम के स्कूलों में आधारभूत सुविधाओं की कमी, शिक्षकों की कम संख्या, और आधुनिक शिक्षण पद्धतियों की अनुपस्थिति भी एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है। कई स्कूलों की इमारतें जर्जर हो चुकी हैं, और डिजिटल युग में जहां स्मार्ट क्लासेस की मांग बढ़ रही है, वहीं मराठी स्कूलों में टेक्नोलॉजी का अभाव है। इससे अभिभावकों का भरोसा इन स्कूलों से कम होता जा रहा है।
सरकारी प्रयास और चुनौतियां
महाराष्ट्र सरकार ने मराठी भाषा को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं। मराठी भाषा को स्कूलों में अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया गया है, और सरकारी स्कूलों में मराठी साहित्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। बावजूद इसके, मराठी माध्यम में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या हर साल घटती जा रही है।
सरकार ने मराठी स्कूलों को वित्तीय सहायता देने और बुनियादी सुविधाएं सुधारने की कोशिश की है, लेकिन ग्राउंड लेवल पर इन योजनाओं का प्रभाव सीमित ही नजर आता है। कुछ स्कूलों को छात्रों की कमी के चलते बंद करना पड़ा, जबकि कुछ स्कूल दूसरे माध्यमों में बदल गए ताकि वे अस्तित्व बचा सकें।
स्थानीय समुदाय की चिंता
मराठी समाज और सांस्कृतिक संगठनों ने इस गिरावट पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि अगर मराठी स्कूल बंद होते रहे, तो आने वाली पीढ़ियों को अपनी मातृभाषा और संस्कृति से जोड़ना मुश्किल हो जाएगा। मराठी सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की पहचान है, और इसे स्कूल स्तर पर संरक्षित करना बेहद जरूरी है।
स्थानीय संगठनों ने मांग की है कि सरकार मराठी स्कूलों में नई शिक्षण तकनीकों को लागू करे, शिक्षकों को बेहतर प्रशिक्षण दे और स्कूलों को अधिक आधुनिक और आकर्षक बनाए, ताकि अभिभावकों और छात्रों का रुझान फिर से मराठी शिक्षा की ओर बढ़ सके।
आगे का रास्ता
अगर मराठी भाषा को मुंबई के शैक्षणिक परिदृश्य में जिंदा रखना है, तो सरकार, स्कूल प्रशासन और समाज को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे। मराठी स्कूलों को आधुनिक सुविधाओं से लैस करना, मराठी साहित्य और संस्कृति को जीवंत बनाना, और बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा के महत्व को समझाना बेहद जरूरी है।
भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति और इतिहास की धरोहर भी होती है। अगर मराठी स्कूलों की गिरती संख्या को समय रहते नहीं रोका गया, तो यह न केवल शिक्षा प्रणाली, बल्कि महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान के लिए भी एक गंभीर संकट बन सकता है।
मराठी स्कूलों को पुनर्जीवित करने के लिए सामूहिक प्रयास और जागरूकता की जरूरत है, ताकि मुंबई की गलियों में मराठी की मिठास और गौरव हमेशा गूंजता रहे।