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बूढ़े की हरकत से डर गया सूरज

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बूढ़े की हरकत से डर गया सूरज (Part-2)

सुबह-सुबह आसमान में केशरी रंग यों प्रतित हो रहा था जैसे कोई उत्सव का संदेश लाया हो. साहसा पहाड़ी पर एक परछाई उभरने लगती है. परछाई के साथ साथ उभरकर सामने आता है एक गांव और एक चेहरा.
उस चेहरे को गौर से देखने पर एक अनुमान लगता है कि चेहरे की उम्र साठ के लगभग होगी. उसके एक हाथ में लाठी और दूसरे हाथ में एक गठरी है! लम्बे लम्बे डग भरती वह परछाईं उस पहाड़ी की ओर बढ़ रही है! बूढ़े की चाल में थकान नहीं, जोश दिखाई देता है.

मेरे जेहन के नेपथ्य में बूढ़े के जोश को देख कर एक गीत उभरा है – सुजलाम सुफलाम वंदे मातरम्. बूढ़े के कदम जहां जाकर रूके वहां वातावरण में गर्म हवाओं की अनुभूति हो रही है! बूढ़े का पीछा करते करते सूरज भी बूढे को थमा देखकर थम गया. गांव में उस बूढ़े को छोड़कर एक भी मनुष्य नहीं दिखाई दे रहा. आसपास तबाही पसरी हुई है! जले हुए मकानों को देख कर बूढ़ा बुदबुदाने लगा – ‘इंसान टूट जाता है एक घर बनाने में; क्यों तुम्हें तरस नहीं आता बस्ती जलाने में’

बूढ़े ने अपनी दाहिनी बांह से अपनी डबडबाई आंखों को पोंछा, आसमान में ऊपर चीलों के चिल्लाने की आवाज, दहशत पैदा कर रही थी. बस्ती की मिट्टी में जलने की बू थी! बूढ़े ने उस मिट्टी की बू को अपनी सांसों में भीतर खींच लिया. बूढ़े के कदम एक जली हुई हवेली के सामने आकर रुक गये . हवेली की ओर गर्दन उठा कर उसने बड़े गर्व से देखा और कुछ बुदबुदाया – ‘थकने नहीं देता मुझे जरूरतों का पहाड़, मेरे बच्चे मुझे कभी बूढ़ा नहीं होने देंगे.’

सूरज अब बूढ़े की हरकतों से परेशान था, उसे जल्दी थी कि बूढ़ा जल्दी से कोई कदम उठाए और जिन्होंने बस्ती का ऐसा हाल किया है, उनको सबक सीखाए. सूरज अपनी लाचारी पर क्रोधित था. जल रहा था मगर किसी से बदला नहीं ले सकता था. वह सोचने लगा कि जरूर इस बूढ़े का इस हवेली से कोई गहरा सम्बन्ध है. अब बूढ़ा रो पड़ेगा! बेचारा बूढ़ा. इस दुःख को सह नहीं पायेगा. मर जायेगा. किन्तु बूढ़े ने ऐसा कुछ नहीं किया. सूरज के अपने प्रश्न हवा में खड़े थे कि तभी बूढ़ा हवेली के भीतर प्रवेश कर गया.

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