ज्ञानमंजरी साइंस कॉलेज, भावनगर, बी.एससी। माइक्रोबायोलॉजी विभाग के सेमेस्टर-6 के छात्रों द्वारा एक डिटर्जेंट (बायोसर्फैक्टेंट) विकसित किया गया है। इस उत्पाद को बनाने का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण के लिए हानिकारक रासायनिक डिटर्जेंट के उपयोग को कम करना है। शैंपू और डिटर्जेंट में इस्तेमाल होने वाला सोडियम लॉरिल सल्फेट त्वचा के लिए बहुत हानिकारक होता है। इसका उपयोग नहीं किया जाता है। आसानी से उपलब्ध सामग्री से बायोसर्फैक्टेंट्स (डिटर्जेंट) तैयार करना।
साइंस कॉलेज B.Sc. माइक्रोबायोलॉजी विभाग के एक छात्र ने फंगस की खेती कर उससे डिटर्जेंट बनाया। प्रयोग के दौरान सोयाबीन, सूक्रोज (शक्कर), पेप्टोन, यीस्ट जैसे आसानी से उपलब्ध होने के कारण फ्लैक्स में विभिन्न कवक की खेती करने के लिए एक बायोसर्फैक्टेंट तैयार किया गया है।
कपड़ों से तैलीय पदार्थों और दागों को हटाने के लिए इस फंगस से प्राप्त डिटर्जेंट द्वारा बायोसर्फैक्टेंट का उत्पादन किया जाता है । इसके अलावा औद्योगिक क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल खाने को लंबे समय तक सुरक्षित रखने, कॉस्मेटिक और शैंपू के लिए किया जाता है। सेमेस्टर-6 माइक्रोबायोलॉजी विभाग की छात्राओं अमृता भयानी, हिताक्षी मनिया, वृति गोहेल द्वार प्रो. Biosurfactant को तृषा गजेरिया के मार्गदर्शन में विकसित किया गया है।
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