Reservation Final Decision: देश में कहीं न कहीं आरक्षण को लेकर आंदोलन और भूख हड़ताल चल रही है. महाराष्ट्र में आरक्षण के मुद्दे पर ओबीसी और मराठा समुदाय आक्रामक हो गए हैं. धनगर समाज भी आरक्षण की मांग कर रहा है. इस बीच पटना हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. बिहार सरकार द्वारा पार की गई 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को कोर्ट ने रद्द कर दिया है. इससे बिहार सरकार को तो झटका लगा ही है, आरक्षण की मांग को लेकर घिरे महाराष्ट्र में भी तनाव पैदा हो गया है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़ा झटका लगा है. बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दी थी. कोर्ट ने राज्य सरकार के इस फैसले को रद्द कर दिया है. इससे नीतीश कुमार सरकार को बड़ा झटका लगा है. तो वहीं महाराष्ट्र में भी मराठा आरक्षण के बाद आरक्षण सीमा बढ़ाने की मांग जोर पकड़ने लगी थी. इसलिए कोर्ट के इस फैसले से महाराष्ट्र को भी तनाव झेलना पड़ सकता है.
ये फैसला पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने सुनाया. बिहार सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में एससी, एसटी, ईबीसी और ओबीसी को 65 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था. इस आरक्षण को कोर्ट में चुनौती दी गई. इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह अहम फैसला लिया है. ये याचिकाएं याचिकाकर्ता गौरव कुमार और अन्य ने दायर की थीं. इस पर सुनवाई के बाद 11 मार्च को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. इसका फैसला आज हो गया है. (Reservation Final Decision)
नौकरियों में किसी का कितना प्रतिशत
पिछले साल बिहार विधानसभा में राज्य के वित्तीय और शैक्षणिक आंकड़े पेश किये गये थे. राज्य सरकार की नौकरियों में किसी की कितनी हिस्सेदारी है, इसकी जानकारी भी सरकार ने दी थी. बिहार में खुले वर्ग की आबादी 15 फीसदी है. लेकिन सरकारी नौकरियों में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है. कुल 6 लाख 41 हजार 281 ओपन कैटेगरी के लोग सरकारी नौकरियों में हैं. दूसरे स्थान पर 63 फीसदी आबादी के साथ ओबीसी वर्ग है. ओबीसी के सिर्फ 6 लाख 21 हजार 481 लोग ही सरकारी नौकरियों में हैं. तीसरे स्थान पर अनुसूचित जाति के लोग हैं। अनुसूचित जाति की जनसंख्या 19 प्रतिशत है। एससी के सिर्फ 2 लाख 91 हजार 4 लोग ही सरकारी नौकरियों में हैं. राज्य की आबादी में एसटी का हिस्सा केवल एक प्रतिशत है। यानी 1.68 फीसदी. इस वर्ग के केवल 30 हजार 164 लोग ही सरकारी नौकरियों में हैं.
आरक्षण की वर्तमान स्थिति
फिलहाल देश में 49.5 फीसदी आरक्षण है. ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण है. जबकि एससी को 15 फीसदी और एसटी को 7.5 फीसदी आरक्षण दिया जाता है. इसके अलावा आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण दिया जाता है. तो आरक्षण की सीमा पहले ही 50 फीसदी से ऊपर जा चुकी है. तथापि, नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग को आरक्षण देने के फैसले को बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि यह कोटा संविधान के मूल ढांचे को नुकसान नहीं पहुंचाता है. (Reservation Final Decision)
महाराष्ट्र के लिए टेंशन?
राज्य में ओबीसी, मराठा और धनगर समुदाय ने आरक्षण की मांग की है. उसके लिए अनशन चल रहा है. ओबीसी ने यह रुख अपना लिया है कि वे अपने कोटे से दूसरों को आरक्षण न दें. इसलिए मराठा समुदाय के लिए अलग से आरक्षण की मांग जोर पकड़ने लगी है. अगर मराठा समुदाय को अलग से आरक्षण दिया गया तो 50 फीसदी आरक्षण की सीमा पार हो जाएगी. पटना कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले से महाराष्ट्र में तनाव बढ़ गया है, यहां तक कि चर्चा है कि अगर इसे कोर्ट में चुनौती दी गई तो आरक्षण टिक नहीं पाएगा. आरक्षण की सीमा बढ़नी चाहिए या नहीं? कहा जा रहा है कि अब इस तरह का भ्रम पैदा होने की संभावना है।