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बूढ़े की हरकत से डर गया सूरज (Part-2)

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बूढ़े की हरकत से डर गया सूरज (Part-2)

अधजली हवेली में भूतों का डेरा है। अधजली लकड़ियों और मिट्टी का ढेर है. टूटी दीवारें हैं, कहीं-कहीं से छत गायब है, अधजली तस्वीरें हैं, एक कोने में टूटा फूटा एक गुलदस्ता पड़ा है. एक टूटा मटका पड़ा है. बूढ़ा एक एक चीज़ को हाथों में पकड़ कर सहला रहा है. साथ ही यह गीत गाने लगता है – ‘स्वप्न झरे फूल से, रत्न चुभे शूल से, कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे’.

हवेली के भीतर एक ओर सीढियां हैं. बूढ़ा सीढियां चढ़ने लगता है. एक ओर से टूटी सीढ़ी में बूढ़े के हाथ की लाठी फंस जाती है. जिसे निकालने की कोशिश में लाठी बीच से टूट गई. बूढ़ा लड़खड़ाया और सीढ़ी पर बैठ गया. दूसरे ही पल उसका चेहरा जोशो-खरोश से भर गया. वह उठकर फिर सीढियां चढ़ने लगा.

सूरज बूढ़े की एक एक हरकत को देख रहा था, सूरज यह भी देख रहा था कि उस हवेली में बूढ़े के अलावा कई आत्माएं भी थीं जो उस बूढ़े की हरकत को अचरज से देखें जा रही थीं, सूरज भयभीत है कि बूढ़ा कहीं गिर न जाये और ये आत्माएं बूढ़े को कहीं कोई नुक्सान न पहुंचाए, किन्तु सूरज मजबूर हैं. वह बूढ़े को बचा नहीं पा रहा, उन आत्माओं से, सूरज झल्लाहट से भर गया.

बूढ़ा अपनी ही धुन में सीढियां चढ़ता जा रहा था. बूढ़े को सबसे ऊपरी मंजिल पर सही सलामत खड़ा देखकर सूरज ने चैन की सांस ली. वह सोचने लगा-पागल हो गया है यह बूढ़ा. इसे सीढ़ियों पर चढ़ कर इतनी ऊंचाई पर नहीं आना चाहिए था. दूसरे ही पल सूरज ये सोचकर भयभीत हो गया कि क्या बूढ़ा यहां से चढ़ कर अपनी जान देने वाला है ? सूरज विवश है. वह बूढ़े को नहीं बचा सकता. सूरज तिलमिलाने लगा.

कल पढ़िए: कि बूढ़ा आगे करता क्या है ? आखिर कौन लोग है जिन्होंने बश्तियां जला दी ?

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