प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेला 2025 का समापन महाशिवरात्रि के दिन हुआ, जिसमें करीब 1.44 करोड़ श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान किया। 13 जनवरी से शुरू होकर 45 दिनों तक चले इस भव्य आयोजन में कुल 66.21 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने भाग लिया। पूरे मेला क्षेत्र में “हर हर महादेव” के जयघोष गूंजते रहे, और इस मेले ने कई विश्व रिकॉर्ड तोड़कर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह बनाई।
इस पवित्र आयोजन में देशभर से संत-महात्मा, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, प्रतिष्ठित हस्तियां और मशहूर सेलिब्रिटी शामिल हुए। लोगों ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाकर मोक्ष की कामना की। हालांकि, शिवसेना (उद्धव गुट) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे इस आयोजन में शामिल नहीं हुए, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई।
उद्धव ठाकरे का बयान और विवाद:
उद्धव ठाकरे ने महाकुंभ में शामिल होने वालों पर कटाक्ष करते हुए कहा, “कुछ लोग गंगा में कितनी भी डुबकी लगा लें, लेकिन उनके विश्वासघात के पाप नहीं धुल सकते।” उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र को धोखा देने वाले चाहे जितनी बार गंगा स्नान करें, उन्हें देशद्रोही ही माना जाएगा। ठाकरे ने यह भी कहा कि उन्हें गंगाजल मिलने पर गर्व है, लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए मेला जाना सही नहीं है।
देवेंद्र फडणवीस की संयमित प्रतिक्रिया:
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से जब इस पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो उन्होंने कहा, “महाकुंभ में वे सभी गए जो सनातन धर्म और हिंदू जीवन पद्धति से प्रेम करते हैं। जो नहीं गए, उनके अपने कारण हो सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वे धर्म से प्रेम नहीं करते।” उन्होंने उद्धmahakubhव ठाकरे के बयान पर नाराजगी जताते हुए कहा, “अगर आप किसी को देशद्रोही कह रहे हैं, तो यह जनता का अपमान है, जिसने उन्हें वोट देकर चुना है। उद्धव जी को आत्मपरीक्षण करना चाहिए।”
राजनीतिक घमासान और धर्म की राजनीति:
महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन के दौरान राजनीति का घुसना एक बड़ा मुद्दा बन गया है। जहां विपक्ष के कई नेता, जैसे रोहित पवार, प्रयागराज जाकर आस्था की डुबकी लगाते दिखे, वहीं ठाकरे गुट की गैरमौजूदगी ने सियासी बयानबाजी को तेज कर दिया। फडणवीस ने इसे व्यक्तिगत आस्था का विषय बताया, जबकि ठाकरे ने इसे राजनीतिक नैतिकता से जोड़ा।
महाकुंभ 2025 ने भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता को दिखाया, लेकिन इससे जुड़ा राजनीतिक विवाद यह भी दिखाता है कि आस्था और सत्ता की राजनीति कैसे एक-दूसरे में उलझ सकती हैं। बावजूद इसके, करोड़ों श्रद्धालुओं की निष्ठा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है।कुंभ 2025 का भव्य समापन: 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई आस्था की डुबकी
प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ मेला 2025 का समापन महाशिवरात्रि के दिन हुआ, जिसमें करीब 1.44 करोड़ श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान किया। 13 जनवरी से शुरू होकर 45 दिनों तक चले इस भव्य आयोजन में कुल 66.21 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने भाग लिया। पूरे मेला क्षेत्र में “हर हर महादेव” के जयघोष गूंजते रहे, और इस मेले ने कई विश्व रिकॉर्ड तोड़कर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह बनाई।
इस पवित्र आयोजन में देशभर से संत-महात्मा, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, प्रतिष्ठित हस्तियां और मशहूर सेलिब्रिटी शामिल हुए। लोगों ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाकर मोक्ष की कामना की। हालांकि, शिवसेना (उद्धव गुट) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे इस आयोजन में शामिल नहीं हुए, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई।
उद्धव ठाकरे का बयान और विवाद:
उद्धव ठाकरे ने महाकुंभ में शामिल होने वालों पर कटाक्ष करते हुए कहा, “कुछ लोग गंगा में कितनी भी डुबकी लगा लें, लेकिन उनके विश्वासघात के पाप नहीं धुल सकते।” उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र को धोखा देने वाले चाहे जितनी बार गंगा स्नान करें, उन्हें देशद्रोही ही माना जाएगा। ठाकरे ने यह भी कहा कि उन्हें गंगाजल मिलने पर गर्व है, लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए मेला जाना सही नहीं है।
देवेंद्र फडणवीस की संयमित प्रतिक्रिया:
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से जब इस पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो उन्होंने कहा, “महाकुंभ में वे सभी गए जो सनातन धर्म और हिंदू जीवन पद्धति से प्रेम करते हैं। जो नहीं गए, उनके अपने कारण हो सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वे धर्म से प्रेम नहीं करते।” उन्होंने उद्धव ठाकरे के बयान पर नाराजगी जताते हुए कहा, “अगर आप किसी को देशद्रोही कह रहे हैं, तो यह जनता का अपमान है, जिसने उन्हें वोट देकर चुना है। उद्धव जी को आत्मपरीक्षण करना चाहिए।”
राजनीतिक घमासान और धर्म की राजनीति:
महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन के दौरान राजनीति का घुसना एक बड़ा मुद्दा बन गया है। जहां विपक्ष के कई नेता, जैसे रोहित पवार, प्रयागराज जाकर आस्था की डुबकी लगाते दिखे, वहीं ठाकरे गुट की गैरमौजूदगी ने सियासी बयानबाजी को तेज कर दिया। फडणवीस ने इसे व्यक्तिगत आस्था का विषय बताया, जबकि ठाकरे ने इसे राजनीतिक नैतिकता से जोड़ा।
महाकुंभ 2025 ने भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता को दिखाया, लेकिन इससे जुड़ा राजनीतिक विवाद यह भी दिखाता है कि आस्था और सत्ता की राजनीति कैसे एक-दूसरे में उलझ सकती हैं। बावजूद इसके, करोड़ों श्रद्धालुओं की निष्ठा ने एक बार फिर साबित कर दिया कि महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है।
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