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सावधान, आपका प्रायवेट पार्ट हो रहा है छोटा

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खतरा बहुत बड़ा है…
इंसान का प्रायवेट पार्ट दिन प्रतिदिन होता जा रहा है छोटा..
बच्चे भी विकृत जननांगों के साथ हो रहे हैं पैदा ….
जनाब, हम नहीं कह रहे ऐसा…
विज्ञान कह रहा है- विज्ञानियों का अध्ययन कह रहा है कि इंसानों के प्रायवेट पार्ट मतलब जननांग दिन-प्रतिदिन छोटा होता जा रहा है …..
गौर फरमाइए, गौर फरमाइए इस रिपोर्ट पर ….नज़रंदाज़ बिलकुल भी न करें, क्योंकि इंसानों का जननांग खुद-ब-खुद छोटा होता जा रहा है- यह कोई शिगूफा नहीं, हकीक़त है…..जिसे आप रोक सकते हैं, जी हाँ उसे आप रोक सकते हैं , मगर कैसे ?
इस कैसे का जवाब जवाब यह वीडियो है…बस इसे देखते रहिये अंत तक …..

दोस्तों, वाकई हम इंसानों के लिए यह बुरी खबर है कि हमारे जननांग धीरे-धीरे छोटे होते जा रहे हैं …सिर्फ हमारे ही जननांग छोटे नहीं हो रहे हैं, हमारी आनेवाली पीढ़ी भी इस रोग के शिकार हैं अर्थात हमारे पैदा लेनेवाली संतानें विकृत जननांग के साथ पैदा हो रहे हैं . सोंचिये , यह कितनी बड़ी समस्या है. यह ऐसी समस्या है जो शनैः – शनैः हमारी संतति की उत्पत्ति पर ही ब्रेक लगा देगा . अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा ? आइये , विज्ञानियों की स्टडी में क्या कहा गया है जानते हैं…

प्रदुषण के दुष्प्रभावों पर न्यू यार्क में एक स्टडी की गयी, जिसमें एक चौंकाने वाला निष्कर्ष सामने आया है. न्यू यार्क की माउन्ट शीनाई हॉस्पिटल में किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि प्रदुषण का मनुष्यों पर इतना ज्यादा दुष्प्रभाव है, जिससे मनुष्य के जननांग धीरे-धीरे स्वतः छोटे होते जा रहे हैं . इसका असर जन्म लेनेवाले बच्चों पर भी देखा जा रहा है. अध्ययन में पाया गया है कि नवजात शिशु के जननांग में विकृति पाई जा रही है. ज्ञात हो, वर्ष २०१९ तक भारत में लगभग १७ लाख लोग प्रदुषण के दुष्प्रभाव से मौत को गले लगा चुके हैं, जबकि दुनिया के पैमाने पर प्रदुषण से मरनेवालों की संख्यां लगभग ४२ लाख है.

अध्ययनकर्ताओं की टीम और माउन्ट शिनाय हॉस्पिटल के इनवायरमेंटल मेडिसिन और पब्लिक हेल्थ की प्रोफ़ेसर डॉक्टर शना सवायन के अनुसार, प्रदुषण के दुष्प्रभावों से लोगों के जननांग पर ही दुष्प्रभाव पद रहा है ऐसा नहीं है, दरअसल यह जनन -क्षमता को भी प्रभावित कर रहा है. अध्ययन से निकले निष्कर्ष के अनुसार प्रदुषण शरीर में जाकर फैथेलेट्स नामक रसायन का निर्माण करता है. इसी रसायन को प्लास्टिक बनाने में भी प्रयोग होता है. अतः इस रसायन का इंसान के एन्ड्रोक्राईन सिस्टम्स पर असर डालता है . चूँकि एन्ड्रोक्राईन सिस्टम से ही हारमोंस का श्राव होता है, जो दूषित हो जाता है और इंसान के जननांग को संकुचित कर देता है.

हम देख -समझ रहे हैं कि दुनिया भर में प्रदुषण किस कदर बढ़ता जा रहा है और अपने दुष्प्रभावों की चपेट में यह दुनिया को लेता जा रहा है. ग्लोबल वार्मिंग, बीमारियाँ, मौसम परिवर्तन, बाढ़, अकाल, सुनामी आदि तो इसके करक हैं ही , अब यह मानव की प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित करता दिख रहा है और इससे बचने का हमारे पास एकमात्र रास्ता है-प्रदुषण पर कण्ट्रोल पा लेना . क्या हम इसके लिए तैयार हैं ?

Report By: Lallan kumar kanj

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