दुनिया में जब से कोरोना (Corona) वजूद में आया है, तब से भारतीये सियासत की अगर समीक्षा की जाये तो कई अजूबे देखने, सुनने और समझने को मिलेंगे. शुरूआती दौर में जब पता चला कि चीन में कोई नयी संकामक बिमारी फ़ैल रही है और उस संक्रामक बिमारी को वर्तमान में उपलब्ध किसी भी दबा से ठीक करना संभव नहीं है, तब भारत सरकार चैन की वंशी बजाती दिखी. कोई एहतियात न तो बरता गया और न ही कोई ऐसी कवायद ही की गयी कि जिससे इस महामुसीबत को भारत में आने से रोका जाये. अफ़सोस कि सरकार की इस अदूरदर्शिता और अकर्मण्यता पर देश ने प्रतिक्रिया तक देना ठीक नहीं समझा . चीन से शुरू होकर लाइलाज बीमारी कोरोना, जिसे कोविद-१९ नाम दिया गया, चीन की सीमा को लांघता हुआ कई दुसरे देशों में जब पैर पसारने लगा और इस क्रम में भारत में भी आ धमका , तब भी हमारे देश में कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई. एक तरफ दुसरे देशों से आनेवाले लोगों की जांच को मजाक बना दिया गया, तो दूसरी तरफ केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार को गिराने के लिए तोड़-जोड़ में मशगुल रही , जबकि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो सारी सीमायें पार कर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मेहमानबाजी को ही अपना भूत-भविष्य बना लिया. यहाँ विरोध के जरूरत कुछ स्वर उठे थे , पर दुर्भाग्य से यह स्वर भी राष्ट्रीय स्वर नहीं बन सका . परिणामतः देश में कोरोना (Corona) बिना रुकावटनाचता हुआ प्रवेश करता रहा कोरोना (Corona) अर्थात कोविद-१९ हमारे देश में बेरोकटोक प्रवेश करता रहा और इसकी परवाह न तो हमारे सत्ताधीशों को थी और न ही हमारे देश के जागरूक नागरिकों को . शायद तब सभी किसी नशे में थे. नशा ही तो था कि भाजपा के महत्वकांक्षी प्लान के अनुसार भाजपानीत सरकार बिलकुल मौन रही, तब तक जब तक कि मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार को पदच्युत कर वह सत्तासीन नहीं हो गयी, जबकि जनता भी लगभग इसी नशे में चूर रही कि येन केन प्रकारेण भाजपा सत्ता तो पा ही ले. अर्थात जनता के लिए भी यहाँ यही सत्ता ही अहम् हो गयी थी , जो इस बात का प्रमाण है की जनता भी नशे में थी. खैर इस दरमियान सरकार की मुराद भी पूरी हो गयी और जनता की मुराद भी. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गयी, भाजपा की सरकार बन गयी और पूरा देश-पुरे देश की जनता कोविद-१९ के घेरे में घिर गयी. ऐसे में सब कुछ पा लेने के गुमान में मोदी और मोदी की सरकार आनन्-फानन में देश को जनता कर्फ्यू, फिर लॉकडाउन के हवाले कर चैन से चादर तान कर सो गयी, शायद मौन रूप से यह कह्हते हुए की मरते रहो भक्त जनता जनार्दन . भक्त जनाताजनार्दन अपनी मस्ती में मस्त रहे, इस हेतु सरकारी अमलों ने भी इस बिच एक बेहतरीन काम किया. उसके हुक्मरान तो चादर तान कर सो चुके थे, अरदासों ने धार्मिक नफ़रत की आग जला कर सबको हाथ सकने में लगा दिया कि फलां धर्म के लोग फलां – फलां तरीके से कोरोना फैला रहे हैं. बस सब जुट गए उसके पीछे और कोरोना अपना काम तमाम करता रहा. ध्यान देनेवाली बात यह भी है की इस बिच कोरोना के शिकार होते लोगों को सरकार की तरफ से कोई रहत प्रदान नहीं किया गया और न ही लॉकडाउन से उपजे बेरोजगारी के तहत ही किसी को कोई रहत पहुचाया गया. हाँ बिजली के बढे बिल और महंगाई के मार्फ़त इस बिच जितना हो सका , जनता को चूसा ही गया, पर मदांध जनता मस्त रही. उस मस्ती में वे तब फिर हस्ती बन बैठे, जब विद्रोह को हवा मिलने से पहले सरकारों ने उन्हें मुफ्त का राशन बांटना शुरू कर दिया. सियासत का कालापन यहीं तक सिमित नहीं रहा. अब जब देश को अनलॉक की ओर बढाया गया . कोरोना का प्रहार कम हुआ, ऐसे में व्यापारिक लूट और छूट को खूब महत्व दिया गया. तदोपरांत, कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो गयी है, तब जब कोरोना का वैक्शीन आ चूका है. आज भी सरकार के पास कोरोना से लड़ने का वही घिसा- पीटा हथियार मौजूद है, जिसका नाम ” लॉकडाउन “. वह लॉक डाउन जिसका अर्थ आज एक साल बाद भी हमारी सरकारें नहीं समझ पायी हैं.
Report By : Lallan Kumar Kanj
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