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अब सरकार से नहीं, सरकारगिरी से चलता है देश

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पहला सवाल है, सरकार कौन है ? प्रजातंत्र है, इसलिए सरकार तो जनता ही है, पर जनता कहती है, सरकार दिल्ली में बैठती है. राज्य की बात करें तो सरकार राज्य की राजधानी में बैठती है- वहीँ से हुक्म चलाती है. ऐसा है तो भाई, फिर प्रजातंत्र कहाँ है ? प्रजातंत्र सिर्फ बातों में है, तो चलिए प्रजातंत्र को बातों में ही रहने दीजिये और सरकार की बात चल रही है , तो सरकार की बात कीजिये. सरकार देश की राजधानी में रहती है या फिर राज्य की राजधानी में , जिसे हम उसके मुखिया के नाम से भी पुकारा करते हैं. मुखिया के नाम से इसलिए की यहाँ भी वही नियम लागू होता है, जैसा जनता के द्वारा मन जाता है कि सरकार राजधानी में बैठी हुयी को कहते हैं, वैसा ही जिस पार्टी की बहुमत वाली सरकार होती है, उस पार्टी के ही नहीं , विपक्षी नेता भी मानते हैं कि उक्त सरकार का जो मुखिया होता है , उसकी ही सरकार होती है . यही प्रजातंत्र है. अब जब यही प्रजातंत्र है , तो हम कल्पना कैसे कर सकते हैं की सरकार हमारे अनुसार चले या हमारे अनुरूप चले ? सरकार तो सरकार ही है, वह अपने अनुरूप ही चलेगी . चलती रहती है . अलग बात है कि हम उसमे अपना हित-अहित ढूंढते रहते हैं, यह जानते हुए भी कि सरकार हमारी नहीं है . अब जिसकी सरकार है , वह जैसा चाहेगी, होगा वैसा ही. क्या कभी आपने सुना है कि रावन के राज में विभीषण के अनुरूप भी राज चला करता था ? नहीं, पर तब रावण के अन्दर भी ऐसी भावना हुआ करती थी की वह अपनी जनता के लिए सोने की लंका बना दे. बनता था, न बनता तो कोई उसका क्या बिगाड़ लेता – रावन था वह-उसकी सरकार थी . ठीक इसी तरह आज इसकी सरकार है-उसकी सरकार है. अब इसकी या उसकी मर्जी कि वह अपने हित के लिए कुछ करे या जनता के हित के लिए ? पर भाई , सरकार जी अब जो भी करना चाहती है, सिर्फ अपने लिए. जनता के लिए तो वह सिर्फ सरकारगिरी भर ही दिखाना जानती है या दिखाना चाहती है, जो हर घडी, हर समय दिखा रही है अर्थात अपना काम कर रही है. शिकायत के लिए कहीं कोई गुंजाईश नहीं है क्योंकि वे सरकार जी है और सरकार जी की सरकारगिरी जरी है-खुश रहिये.

Report by : Lallan Kumar Kanj

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