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महिला दिवस: आत्मरक्षा प्रशिक्षण को पाठ्यक्रम में शामिल करने की आवश्यकता

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Women's Day Special: Need to include self-defense training in the curriculum for safety

पारसमणि अग्रवाल

शायद ही ऐसा कोई दिन हो जिस दिन समाचार पत्र महिला सुरक्षा पर संचालित हो रही विभिन्न योजनाओं एवं जिम्मेदारों द्वारा किये जा रहे दावों को कटघरे में घसीटा नजर न आता हो क्योंकि सौभाग्य से कोई दिन ही शायद ऐसा होगा जिस दिन महिला अपराध से जुड़ी खबर समाचार पत्र के जहन में न उकेरी गई हो। आये दिन महिला अपराध से जुडी बलात्कार, छेड़खानी आदि घटनाये सुनने को मिलती है जो दिल और दिमाग को झकझोर कर देती है और हृदय में यह अनुभूति सी होने लगती कि भले ही हमारा समाज प्रगति के पथ पर अग्रसर हो परन्तु समाज में भेड़ियों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है। घटनाएं होती है, जांच कमेटी बनती है, निलंबन होते है और कैंडिल जलाकर गुस्सा जाहिर कर लिया जाता है ज्यादा हुआ तो डिजिटल युग में होने की वजह से सोशल मीडिया पर उस घटना को लेकर हैजटैक अभियान चला दिया जाता और दो चार दिन न्याय की गुहार लगाकर सब पुनः सामान्य हो जाता है। महिला अपराध को लेकर करोड़ो – अरबों रूपये का बजट बनाये जाने के बाद भी अपराधों के ग्राफ में गिरावट होने की जगह बढ़ोत्तरी होती जा रही है। मेरा यह बोलना आत्मघाती हो सकता लेकिन मेरा यह व्यक्तिगत मानना है कि बढ़ते अपराध के लिए जितना हमारा शासन- प्रशासन जिम्मेदार है उतना ही हम, आप और हमारा समाज क्योंकि हम अपने अधिकार के प्रति तो जागरूक है परन्तु अपने कर्तव्यों के प्रति एकदम उदासीन। बड़े – बुजुर्ग अक्सर कहा भी करते है कि अच्छे और विकसित राष्ट्र का निर्माण उस देश के नागरिकों से ही होता है। हमारे जिम्मेदारों को भी इस मुद्दे को राजनैतिक मुद्दा न बनाकर ठोस और कारगर उपाय करने की जरूरत है। देखने को मिल जाता है कि सत्तासीन हमारे जिम्मेदार योजनाओं के नाम पर विभिन्न प्रकार की लॉलीपॉप पकड़ाकर खुद को महिला हितैषी साबित करने में लग जाते है जबकि वह वाकई महिला सुरक्षा के लिए वचनबद्ध और सकंल्पित है तो उन्हें हजार दो हजार रूपये की योजनाओं का झुनझुना पकड़ाने से अच्छा है कि महिला सुरक्षा के लिए कोई ऐसा कदम उठाये और आमजन मानस भी ईमानदारी के साथ आगे आये जिससे महिला अपराध के ग्राफों को शून्य तक लाया जा सके। मानता हूँ कि वर्तमान परिस्थतियों पर आधुनिकता की चढ़ी परत से महिला सुरक्षा के ग्राफ को कम करना तब तक सम्भव नहीं है जब तक शासन प्रशासन के साथ साथ आम आवाम भी इस दिशा में प्रयास न करें लेकिन यह नमुमकिन भी नहीं है। बात महिला सुरक्षा की है तो मुझे लगता है कि महिलाओं से वोट बैंक बटोरने के चक्कर में योजनाओं का झुनझना पकड़ाने की वजह उन्हें स्वयं इस मिशन हेतु आगे लाने की आवश्यकता है क्योंकि स्वंय की हिम्मत ही सबसे बड़ी हिम्मत है और इसके लिए आवश्यकता है कि महिला सुरक्षा हेतु आत्मरक्षा प्रशिक्षण को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए क्योंकि बहिनों के पास जब आत्मरक्षा की कला होगी तो वह भेड़ियों से निपटने में वह काफी हद तक सक्षम साबित होगी।

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