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कोरोना काल में पारसी समाज ने तीन हजार साल पुरानी प्रथा

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पारसी समाज ने कोरोना (Corona) के चलते बदली अंतिम संस्कार की तीन हजार साल (3000 years) पुरानी प्रथा कोरोना (Corona) के चलते पारसी महिला पुरुषों के शवों को अब टावर ऑफ साइलेंस अथवा गहरे कूंए में खुला छोडने के बजाए अग्निदाह को मंजूरी दी।कोरोना (Corona) महामारी के चलते पारसी समुदाय को मृत देह के अंतिम संस्कार की 3 हजार साल पुरानी परंपरा को बदलकर अग्निदाह करने पर मजबूर (Labor) होना पड रहा है।

पारसी समाज में मृत देह को गिद्धों के लिए टावर ऑफ साइलेंस पर खुले में छोड दिया जाता है। पारसी पंचायत सूरत के पदाधि‍कारियों ने कोरोना के चलते मृत पारसी महिला पुरुषों के शवों को अब टावर ऑफ साइलेंस अथवा गहरे कूंए में खुला छोडने के बजाए अग्निदाह को मंजूरी दी है।पारसी पंचायत के प्रमुख एस जी करंजिया बताते हैं कि देश में उनके समुदाय के लोगों की जनसंख्‍या करीब 1 लाख है।

सबसे अधिक लोग मुंबई में रहते हैं जबकि सूरत में ढाई से तीन हजार की आबादी है। इनमें कोरोना के चलते करीब 50 लोगों का निधन हो चुका है। पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्‍कार की जो प्रथा है कि वो लोग मृत देह को गिद्धों को खाने के लिए छोड़ दिया जाता था लेकिन कोरोना काल मे ये 300 साल पुरानी परंपरा को कॅरोना को चलते बदल दिया गया है जिसमें शव को गिद्धों व अन्‍य पक्षियों के लिए खुले में छोड दिया जाता है। दरअसल पारसी समुदाय अग्नि, जल, प्रथवी को पवित्र मानकर मृत देह को उनके सुपूर्द नहीं करता है।पारसी शिक्षक एवं कलाकार यसदी नौसरखान करेंजिया बताते हैं कि समाज में लंबे समय से अंतिम संस्‍कार की विधि को लेकर चर्चा होती थी। गिद्धों की संख्‍या लगातार घटने से परिवार के सदस्‍य के शव को खुले में छोडने के बाद वह 6 से 8 माह तक पडा रहता है।

Report by : Geeta Yadav

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