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लॉकडाउन नहीं, रोटी चाहिए. सरकार उहापोह में है कि क्या राज्य भर में लॉक डाउन

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मुंबई में तमाम बंदिशों के बावजूद चहल-पहल बरक़रार है. इस चहल- पहल के बिच
सरकार परेशां है, क्योंकि सरकारी अमलों से सरकार को जो रिपोर्ट मिल रही है, वह
हैरान कर देनेवाला है. दूसरी पारी में कोरोना कहर बन कर आया है.चारों तरफ
हाहाकार है. भारी मात्र में लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं और बहुतों का विकेट
भी गिर रहा है. ऐसे में आखिर सरकार क्या करे . सरकार उहापोह में है कि क्या
राज्य भर में लॉक डाउन लगा दिया जाये ?
हालांकि सरकार ने पहले से ही काफी बंदिशों की घोषणा कर रखी है. तमाम
पाबंदियों के साथ टुकड़ों में ही सही, कहीं रात्रि कर्फ्यू, तो कहीं अन्य बंदिशें तो लागू
ही है, कहीं कहीं लॉकडाउन भी किया गया है. लेकिन देखने में यह आ रहा है कि
इन बंदिशों को इस बार जनता मानाने को तैयार नहीं है. शायद जनता के दिमाग से
कोरोना का भय समाप्त हो गया है ? संभवतः नहीं ! पब्लिक जानती है कि कोरोना
क्या है , लेकिन कोरोना के पहले चरण में सरकार द्वारा तैयारीपूर्व बिन
सोंचे-समझे जनता कर्फ्यू और फिर लॉकडाउन की घोषणा से जनता को जो तकलीफें
उठानी पड़ी थीं और जिस तरह वह खुद को बिन अन्न -जल के क़ैद में पाया था,
उस त्रासदी को वह दोबारा नहीं देखना चाहती . इससे भला उनके लिए कोरोना से
मिली मौत है.
खैर , यह जनता का पक्ष है की वे दोबारा लॉक डाउन के त्रासदियों के जाल में नहीं
फ़साना चाहती, पर सरकार तो सरकार है, उसे सरकारगिरी तो दिखानी ही है, जैसे
पहले दिखाई थी. लेकिन थोडा सा परिवर्तन है. इस बार अपनी जिम्मेदारियों से
बचती हुयी मोदी सरकार ने अपनी इस जिम्मेदारी को राज्य सरकारों के माथे मढ़
दिया है. अब राज्य सरकारें भी वही मोदीनुमा सोंन्च के तहत उटपटांग फैसले लेने
को तत्पर है. लगातार सरकार की ओर से इशारे किये जा रहे हैं की राज्य में कभी
भी लॉकडाउन लगाये जा सकते हैं , शायद अब तक लॉक डाउन लगा भी दिए जाते,
क्यों की यह सब से सरल रास्ता है. लोच्क्दोवं लगा दो और चादर तान कर सो
जाओ. जनता मरती है तो मारती रहे. बस हम इसे जनता का सौभाग्य ही कहेंगे की
राजनीतीवश ही सही विपक्ष लॉक डाउन के आड़े आ खडा हुआ है. विपक्ष के दवाब
में कुछ सत्ता पक्ष के नेता भी दबी जुबान विरोध करने लगे हैं, जिससे सरकार पर
काफी दबाव बना है और यही कारन है की लॉकडाउन का आदेश कही अटक सा गया
है. यह अच्छा है.
सरकारें बिना समझ के लॉकडाउन करती है तो जनता बिना कोरोना के ही मरती है-
भूख से, दावा के बिना और घर में बंद रह कर . ऐसे में लॉक डाउन को मुफीद तो
कोई पागल ही कह सकता है. फिलहाल लोगों को लॉक डाउन से ज्यादा रोजगार की
जरुरत है. उसी रोजगार से वह अपना पेट भी भारती है और मुसीबत में कभी काम
न आनेवाली सरकारों का भी .

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