देश मे पिछले कई सप्ताह से देश के कई बड़े शहरों में बिजली का संकट बढता़ जा रहा है। देश के कई शहरों में सड़कों पर सिर्फ गाड़ियों की लाइटें चमक ही चमक रही हैं। इस बिजली संकट से आम लोगों का जन जीवन अस्त व्यस्त होता जा रहा है । इससे देश की अर्थव्यवस्था को भी काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। क्योंकि बिजली न होने से फैक्ट्रियां बंद हो सकती हैं। उत्पादन रुक सकता है,अगर ऐसा हुआ तो देश अब एक नए संकट में पड़ सकता है।जबकि कई राज्य सरकारों ने कोयले के संकट का दावा किया है।
देश के ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने कोयले में कमी के दावे को खारिज तो कर दिया ।उधर उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भ्रम फैलाने का आरोप लगाते हुए दावा किया कि बिजली का कोई संकट नहीं है और कोयले का पर्याप्त स्टॉक है।ऊर्जा मंत्री ने कहा, ”कल शाम दिल्ली के उपराज्यपाल ने संभावित बिजली संकट को लेकर मुख्यमंत्री के लिखे पत्र को लेकर मुझसे बातें की है , मैंने उन्हें बताया कि हमारे अधिकारी की हालातों की निगरानी कर रहे हैं और ऐसा नहीं होगा” उन्होंने कहा कि मैंने बीएसईएस, एनटीपीसी और बिजली मंत्रालय के अधिकारियों के साथ बैठकें भी की है। ऊर्जा मंत्री ने कहा कि कोई समस्या नहीं है। समस्या इसलिए शुरू हुई क्योंकि गेल ने दिल्ली डिस्कॉम को गैस आपूर्ति रोकने की बात कही थी और वह इसलिए क्योंकि गेल और दिल्ली डिस्कॉम का एग्रीमेंट खत्म हो रहा है। वहीं दिल्ली सरकार में मंत्री सतेंद्र जैन ने कहा कि कोयले की आपूर्ति एक दिन की बची है। एक महीने का नहीं तो 15 दिन का स्टॉक जरूर होना चाहिए।
नियम यह है कि पावर प्लांट्स में बैकअप के तौर पर औसतन बीस दिन का कोयला स्टॉक हमेशा उपलब्ध होना चाहिए और सच ये है कि सिर्फ चार दिन का कोयला ही बचा है, जिसे ऊर्जा मंत्री ने खुद कबूल किया है, इसके अलावा भी कई राज्य सरकारें इसको लेकर खतरे का अलर्ट जारी कर चुकी हैं।
राजस्थान, तमिलनाडु, झारखंड, बिहार, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र…ये वे राज्य हैं, जहाँ की सरकारों ने कोयले की कमी से बिजली उत्पादन में कमी की शिकायत केंद्र सरकार से भी कर दी है।लेकिन जिन राज्यों ने शिकायत नहीं भी की है, वहां भी कोयले की कमी से बिजली की कटौती कोई कम बड़ा संकट नहीं है। सबसे बड़ा उदाहरण तो उत्तर प्रदेश है ,जहाँ उत्तर प्रदेश के इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने बताया कि कोयले के संकट के कारण देश का बिजली उत्पादन काफी प्रभावित हुआ है। देश के 135 ऐसे प्लान्ट हैं जो कोयले से चलते हैं।जहाँ पर आधे से अधिक में कोयला समाप्त हो गया आधे में दो ढाई दिन का ही कोयला बचा है। जब पावर प्लांट्स में हमेशा कम-से-कम बीस दिन का स्टॉक होने का नियम मौजूद है तो फिर सिर्फ चार दिन का कोयला स्टॉक ही क्यों मौजूद है ? ऊर्जा मंत्रालय ने इसके चार कारण गिनाएं है, जिन्हें हम विस्तार से आपको समझाते हैं- पहली वजह बताई गई है कि देश में बिजली की मांग बढ़ी है 2019 में अगस्त-सितंबर में बिजली की खपत करीब 10 हजार 660 करोड़ यूनिट्स हुई थी, जबकि इस साल अगस्त-सितंबर में 12 हजार 400 करोड़ यूनिट्स हो गई। अगस्त-सितंबर 2019 की तुलना में इस साल के इन्हीं दो महीनों में कोयले की खपत 18 प्रतिशत बढोत्तरी पाई गई। जबकि दूसरी वजह बताई गई है कि सितंबर में कोयला खदानों के आसपास ज्यादा बारिश होने से कोयले का उत्पादन प्रभावित हुआ है। भारत अपनी जरूरत का 75 फीसदी कोयला घरेलू खदानों से ही निकालता रहा है । पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा के कई कोयला खदानों में पानी भर जाने की वजह से कई दिनों तक काम बंद रहा।

Reported by – Brijendra Pratap Singh

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