Chief minister : महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद को लेकर हालिया राजनीति में नया मोड़ आया है, और इससे राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने की संभावना को लेकर चर्चा तेज हो गई है। मुंबई में आज होने वाली शपथग्रहण की जो योजना थी, उसे अचानक रद्द कर दिया गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि महायुती (शिवसेना, भाजपा और अन्य सहयोगी दलों का गठबंधन) में मुख्यमंत्री पद के लिए सहमति नहीं बन पाई है।
भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) ने राज्य में 132 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद, मुख्यमंत्री पद पर कब्जा करने का अधिकार अभी तक तय नहीं किया है। वहीं, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला गुट 57 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर है, और शिंदे गुट के विधायक यह चाहते हैं कि उनका नेता मुख्यमंत्री बने। दूसरी ओर, भाजपा विधायक यह चाहते हैं कि देवेंद्र फडणवीस को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जाए। इस टकराव ने महायुती में मतभेद पैदा कर दिए हैं और पार्टी के अंदर असमंजस की स्थिति उत्पन्न कर दी है। (Chief minister)
यह स्थिति बिल्कुल वैसी ही है जैसी 2019 में थी, जब मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा और शिवसेना के बीच कड़ी खींचतान हुई थी। उस समय भी शिंदे और फडणवीस के बीच सत्ता संघर्ष ने राज्य में राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया था। अब एक बार फिर से वही स्थिति उत्पन्न हो गई है, और इस बार वक्त बहुत कम है। महायुती के पास अगले 24 घंटे का समय है, और यदि इस मुद्दे का समाधान नहीं निकला तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।
कांग्रेस और एनसीपी की मौजूदगी के बिना, भाजपा और शिंदे गुट के लिए किसी साझा समाधान पर पहुंचना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। यदि मुख्यमंत्री पद का विवाद हल नहीं हुआ और सरकार गठन की प्रक्रिया में देरी होती है, तो संविधान के अनुसार राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है। (Chief minister)
यह स्थिति महाराष्ट्र के लिए राजनीतिक अस्थिरता और भविष्य की सरकार के लिए चुनौती पैदा कर सकती है। इस समय महायुती के नेताओं के पास अंतिम निर्णय लेने का अवसर है, लेकिन यदि सहमति नहीं बन पाई तो महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की ओर स्थिति बढ़ सकती है, जिससे राज्य में प्रशासन का नियंत्रण सीधे राष्ट्रपति के हाथों में आ जाएगा।