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आतंकवाद के सामने महाशक्तियों की असफलता

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अफगानिस्तान का मौजूदा हालात बद से बदतर हो चुका है , वहाँ के शासन प्रशासन में पूरी तरह से तालिबानियों का कब्जा हो चुका है । अफगानिस्तान में सदियों से देखा जा रहा है कि सबसे पहले ब्रिटेन को वहाँ से मुंह की खानी पड़ी, उसके बाद सोवियत रूस को मुंह की खानी पड़ी इन दोनों देशों को अफगानिस्तान को पूरी तरह से छोड़ना पड़ा। उसके बाद आया विश्व की महाशक्ति के नाम से मशहूर संयुक्त राष्ट्र अमरीका इसने भी लगभग 20 वर्षो तक अफगानिस्तान में तालिबानियों से संघर्ष किया।लेकिन इसमें महाशक्ति अमरीका भी विफल रहा। अमेरिका 31 अगस्त तक अपने सैनिकों को अफगानिस्तान से पूर्णतः छोड़कर अपने देश बुला लिया है। लौटने से पहले लगभग 20 वर्षो में अमेरिका ने अपने ढाई हजार सैनिकों को अफगानिस्तान में तालिबान लड़ाकों से लड़ते हुए खोये हैं।

इन 20 वर्षो में अमरीका ने लगभग वहाँ पर 2.27 ट्रिलियन डॉलर की राशि खर्च की, हजारों नागरिकों को खोया, हजारों ठेकेदारों को खोया, इसके बावजूद भी उसे कुछ भी हाथ नहीं लगा। लेकिन अगर देखा जाए तो जब तक अमेरिकी सैनिकों का प्रभाव अफगानिस्तान में रहा वहां पर एकदम शांति का माहौल बना रहा। लेकिन जैसे ही उसके सैनिकों ने अफगानिस्तान छोड़ना शुरू किया वहाँ पर तुरंत तालिबान का राज कायम हो गया, लोगों को मारा-काटा जा रहा है, शरिया कानून लागू कर दिया गया ,महिलाओं की आजादी छीन ली गई है,10 वर्ष की बच्चियों को स्कूल (School)  जाने की पूर्णतः मनाही कर दी गई है।

तालिबान के खौफ इस तरह से है कि वहाँ पर उद्योगों के साथ साथ सरकारी संपत्तियों पर भी तालिबान के पूर्णतः कब्जा हो चुका है। एक तरह से हम कह सकते हैं कि तालिबान अब अलकायदा और आईएसआईएस आतंकी संगठनों का अफगानिस्तान अड्डा हो चुका है।अभी 26 अगस्त को काबुल एयरपोर्ट हुए भीषण आत्मघाती हमले में लगभग सैकड़ों नागरिक मारे गए और हजारों की संख्या में नागरिक घायल हुए । इस भीषण आत्मघाती हमले की जिम्मेदारी सबसे खतरनाक आतंकी संघठन आईएसआईएस ने ली है। इस तरह हम कह सकते हैं कि दुनिया की सबसे शक्तिशाली देशों के लिए यह उनकी एक असफ़लता ही है..!!

Report by : बृजेन्द्र प्रताप सिंह

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