Chembur Seat : चेंबूर विधानसभा सीट को लेकर महागठबंधन में रस्साकशी तेज हो गई है। इस सीट पर शिवसेना, बीजेपी और आरपीआई (रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया) ने अपनी-अपनी दावेदारी पेश की है, जिससे स्थिति और अधिक जटिल हो गई है। चेंबूर, जो एक महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र है, में राजनीतिक समीकरणों के चलते यह खींचतान महागठबंधन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है।
रामदास अठावले, आरपीआई के प्रमुख, ने चेंबूर सीट पर अपने दावे को दृढ़ता से रखा है। अठावले का कहना है कि उनकी पार्टी ने पिछले चुनावों में इस क्षेत्र में अच्छी स्थिति बनाई थी, और इसलिए उन्हें यहां से उम्मीदवार देने का अधिकार है। वहीं, शिवसेना और बीजेपी भी इस सीट पर अपनी दावेदारी को लेकर अडिग हैं। शिवसेना का दावा है कि वे चेंबूर में स्थानीय मुद्दों और विकास कार्यों के आधार पर चुनावी मैदान में उतरना चाहते हैं। (Chembur Seat)
महागठबंधन में यह खींचतान न केवल गठबंधन के भीतर की दरार को उजागर कर रही है, बल्कि यह भी दिखा रही है कि कैसे विभिन्न दल अपने-अपने हितों के लिए तैयार हैं। बीजेपी ने चेंबूर में अपनी उपस्थिति को बढ़ाने के लिए इस सीट को अपने लिए महत्वपूर्ण माना है, जबकि शिवसेना ने इस क्षेत्र में अपनी ऐतिहासिक पकड़ को बरकरार रखने की कोशिश की है।
चेंबूर विधानसभा सीट पर दावेदारी को लेकर हो रही खींचतान से यह भी स्पष्ट है कि महागठबंधन के भीतर एकजुटता की कमी हो रही है। यदि यह स्थिति बनी रहती है, तो यह आगामी चुनावों में महागठबंधन के लिए एक बड़ी समस्या बन सकती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सीटों के बंटवारे के मामले में आपसी सहमति न बनने पर यह गठबंधन कमजोर हो सकता है, जिससे वोट बैंक पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। (Chembur Seat)
चेंबूर में दावेदारी को लेकर हो रही यह रस्साकशी महागठबंधन की रणनीतियों के लिए एक गंभीर चुनौती हो सकती है। यदि जल्द ही इस मुद्दे का समाधान नहीं किया गया, तो यह चुनावी स्थिति को और भी जटिल बना सकता है। सभी दलों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि अंततः उनका मुख्य लक्ष्य चुनावी सफलता है, और इसके लिए उन्हें आपसी सहमति बनाने की आवश्यकता है। इस तरह की खींचतान से न केवल महागठबंधन की स्थिति कमजोर होगी, बल्कि मतदाता के बीच भी असंतोष फैल सकता है, जो आने वाले चुनावों में निर्णायक साबित हो सकता है।
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