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कोरोना साहब तब कहीं नहीं पधारे

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कोरोना साहब तब कहीं नहीं पधारे

चीन से जब नई बिमारी कोरोना (Corona virus) के वजूद में आने की खबरें आनी शुरू हुई तो भारत
के सियासी पुरुषों के चेहरे पर सिकन तक न थी. तब हम बस सुन रहे थे की ऐसी
बीमारी फ़ैल रही है या चीन से शुरू होकर कई अन्य देशों तक पहुँच रहा है कोरोना (Corona virus) .
ऐसी घडी में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी इन खबरों-चिंताओं से दूर अमेरिका के
तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को गुजरात का भ्रमण करा रहे थे या फिर अपनी
कुटिल तिरछी नज़रों के वार से मध्य प्रदेश की सरकार को गिरा रहे थे और अपनी
नयी सरकार के जुगत में अपने घोड़े दौड़ा रहे थे. आखिरकार ट्रम का घुमना, मध्य
प्रदेश सरकार का गिरना और फिर भाजपा की वहाँ नयी सरकार बन जाना, सबकुछ
सोंच के अनुरूप ही हुआ और वह भी बिना किसी प्रकार के रोक टोक के . जैसे ही
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को पदच्युत कर भाजपा की सरकार बनी, अचानक
देश में कोरोना (Corona virus) का भूचाल आ गया , मनो देश अब तबाह हुआ की तब . यह
स्थिति श्री कृष्णा – काल की याद दिलाने लगी थी, जब इंद्र के प्रकोप से पूरा मथुरा
डूबने लगा था और तब श्री कृष्ण को गोबर्धन पर्वत को उठा कर मथुरा को डूबने से
बचाना पड़ा था. अब जब कोरोना के कारन भी यही स्थिति बन रही थी . पुरे देश
का अंत होनेवाला था, तब यहाँ भी एक कृष्ण की आवश्यकता थी, सो हमारे पीएम
ने भी श्रीकृष्ण का रूप धरा और गोबर्धन की जगह लॉक डाउन की घोषणा के बाद
चादर तान कर सो गए. बिच बिच में जागते रहे और ताली- थाली बजवाते
रहे-मोमबती जलवाते रहे…समय बितता रहा और देखते ही देखते कब को एक साल
पूरा हुआ , शयद किसी को पता भी नहीं चला . साथ ही यह भी किसी को पता नहीं
चला की कारों-काल में , जब हर तरफ पाबंदियां ही पाबंदियां थी, बिहार समेत कई
राज्यों में चुनाव कैसे हो गए ? चुनाव के दरम्यान सम्बंधित राज्यों में भाषण भी
होते रहे नेताओं के और जनता भीड़ बन कर भाषण सुनती भी रही, पर कोरोना
साहब कहीं नहीं पधारे. हाँ , गौण जाने के लिए या भूख से निजात पाने के लिए
जब भी , जहां भी और जिस तरह से भी कोई गरीब कहीं जुटा या निकला, वहाँ
कोरोना फैलाना शुरू हो गया .
बातें कई हैं, जो अजूबा की तरह प्रतीत होती हैं. आम जनता को डराता – सताता
कोरोना जहां नेताओं के पास कभी नहीं फटका या उनकी विशेष पार्टी, सभा, आदि में
कभी नहीं पहुंचा, वहीँ जनता को वह तबाह करता रहा- खुद भी मारता रहा और
सरकारी-गैर सरकारी संस्थानों को भी मारने का मौका देता रहा . महंगाई और
कथित बढ़ा कर भेजा गया बिजली का बिल इसका बेस्ट उदहारण है. इसके बावजूद
शनैः शनैः स्वतः कोरोना गमन करने लगा था की कई राज्यों में चुनाव की घोषणा
के साथ वह फिर लौट आया , तब जब जन-जीवन लगभग सामान्य हो चूका था.
दुकानें खुल गयीं थीं, बाज़ार में पहले की तरह भीड़ होने लगी थी और बस-रेल में
लोगों के रेले चलने लगे थे, फिर से कोरोना लौट आया .
कोरोना लौट आया, मगर अब भी सब खुले हैं. भले ही सरकारी प्रतिबंधों के रोज नए
आदेश जारी हो रहे हैं , पर सब खुला है . इस खुले में अब कोरोना भी सरवाइब कर
रहा है-सरकार और जनता भी. मतलब सब एक ही घाट पर मिलजुल कर पानी पी
रहे हैं, फिर यह कोरोना – कोरोना का शोर क्यों ?

Report by: Lallan Kanj

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