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SPECIAL STORY: UN में इजराइल का नहीं बल्कि फिलिस्तीन का क्यों साथ दिया भारत ने ? जानिए हिंदुस्तान की मजबूरियां के बारे में विस्तार में

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भारत (India) और इजराइल (Israel) की इतनी घनिष्ठ मित्रता होने के बावजूद भी जब यूएनओ (UNO) की सिक्योरिटी (Security) काउंसिल (Council) में मीटिंग (Meeting) हुई तो भारत (India) ने अपने मित्र देश इजरायल (Israel) का साथ ना देते हुए फिलिस्तीन (Palestine) का समर्थन किया। भारत (India) ने यूएनओ की बैठक में इस तरह का स्टैंड लेकर कहीं ना कहीं बीच बचाव का रास्ता निकाला की कोशिश की है। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या भारत के इस कदम से हमारे देश और इजराइल (Israel) के संबंधों में खटास आएगी? वहीं टर्की और पाकिस्तान (Pakistan) जैसे अन्य मुस्लिम देशों की मध्यस्थता से क्या पिलिस्तीन इजराइल में संघर्ष विराम कर पाएगा की नहीं? आइये इस पूरे समीकरण को विस्तार से समझते हैं।

यूएनओ में भारत के राजदूत टीएस मूर्ति (T.S.Moorty) ने फिलिस्तीन और इजराइल के बीच जारी जंग पर कहा है कि, ‘भारत किसी भी प्रकार की हिंसा का विरोध करता है। चाहे वो हमास द्वारा दागे गए रॉकेट क्यों ना हो? इस हमले में एक भारतीय नर्स की मृत्यु भी हुई है। वहीं इजराइल द्वारा फिलीस्तीन के रिहायसी इलाकों में की गई बमबारी में मारे गए लोगों का भी भारत पुरझोर विरोध करता है। यह यूएनओ की बैठक में भारत का इजराइल और फिलिस्तीन के बीच शुरू खूनी संघर्ष पर ऑफिसियल स्टैंड था।

इसके साथ-साथ भारत ने यूएनओ में वो बयान दिया जो इजराइल को बिलकुल भी पसंद नहीं है। भारत ने यूएनओ में कहा कि, ‘हिंदुस्तान वहां दो राष्ट्र देखना चाहता है, इजराइल भी और फिलिस्तीन भी। जबकि इजराइल पूरे फिलिस्तीन को अपना क्षेत्र मानता है। खैर फिलिस्तीन भी अब मान गया है कि हमें थोड़ा सा क्षेत्र दे दो क्योंकि इजराइल ने पिछले 70 सालों में फिलिस्तीन से ज्यादातर हिस्सा ले लिया है।

इसके अलावा भारत ने जेरुसलम विवाद पर भी यूएनओ में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि, ‘जो जेरुसलम की पुरानी स्थिति है, यूएनओ के अनुसार, इजराइल ने जेरुसलम को बाद में हासिल किया है। जेरुसेलम को लेकर भारत पुरानी स्थिति को स्थापित करना चाहता है। भारत के इस बयान को सुनकर यह कहा जा सकता है कि यूएनओ में भारत ने फिलिस्तीन का साथ दिया है।

यह बात दुनिया से छिपी नहीं है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendre Modi) और इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) के बीच कितनी गहरी दोस्ती है? इसका अंदाजा आप प्रधानमंत्री मोदी के इजराइल और नेतन्याहू के भारत दौरे की तस्वीरों से लगा सकते हैं।लेकिन भारत के राजदूत ने जो इजराइल और फिलिस्तीन संघर्ष पर यूएनओ में बयान दिया है, उसकी स्क्रिप्ट प्रधानमंत्री कार्यालय में लिखी गई थी। भारत के राजदूत ने यूएनओ में सिर्फ इतना नहीं कहा कि, ‘हम फिलिस्तीन का समर्थन करते हैं, बल्कि कहा कि, ‘हम फिलिस्तीन का पुरझोर समर्थन करते हैं।’

इससे पहले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने भी फिलिस्तीन का समर्थन किया था। बाजपेयी ने भी इजराइल से कहा था कि, ‘उसे फिलिस्तीन की भूमि लौटा देनी चाहिए।’

अब आपके दिमाग में यह विचार जरूर आ रहे होंगे कि हमारे देश के प्रधामंत्री इस तरह के बयान क्यों देते हैं? हम इस तरह का कदम क्यों उठाते हैं? हम इजराइल का साथ क्यों नहीं दे पाते? इजराइल का साथ ना दे पाने के पीछे भारत की कई मजबूरियों हैं। इनमें प्रमुख तीन से चार रणनीतिक और व्यापारिक मजबूरियां हैं। जिन्हें हम आगे विस्तार में आपको समझाएंगे।

यूएनओ सिक्योरिटी काउंसिल की बैठक में दुनिया का सुपरपावर देश अमेरिका इजराइल का साथ देते हुए नजर आया। जबकि चीन ने यूएनओ में इस मुद्दे को पुरझोर तरीके से उठाया था। हालांकि अमेरिका ने इस मुद्दे को दबा दिया। वहीं कुछ दिन पहले अमेरिकी के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी खुला बयान देकर इजराइल और फिलिस्तीन के मुद्दे पर इजराइल का साथ दिया था। अमेरिका के राष्ट्रपति ने कहा था कि, ‘इजराइल को अपनी आत्मरक्षा करने का पूरा अधिकार है। अमेरिका के इस इशारे को इजराइल बखूबी समझ गया। और उसने गाजा-पट्टी को पूरे तरीके से निस्तोनाबूत करना शुरू कर दिया।

अमेरिका (America) के इस स्टैंड से चीन को बहुत ज्यादा बुरा लगा। चीन (China) को भी समझना चाहिए कि हम भारतीयों को भी बुरा लगता था, जब अमेरिका और यूरोपियन (European) यूनियन आतंकी मसूद अजहर के संगठन को आतंकी संगठन और आतंकी अजहर को रेड कॉर्नर नोटिस जारी करना चाहता था। लेकिन चीन के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो पाया। इस वजह से यह सारे आतंकी संगठन पाकिस्तान में बैठकर फल-फूल रहे हैं और दुनियाभर भर में आतंकी हमले करवाकर बेकसूर लोगों की जान ले रहे हैं।
अब चीन के ऊपर आया है तो, उसको जरूर समझ आ गया होगा कि दूसरों के मसलों में टांग नहीं अडानी चाहिए।

फिलिस्तीन और इजराइल के बीच जारी संघर्ष पर दुनिया के हर एक देश का अलग-अलग स्टैंड है। फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास को चीन और पाकिस्तान जैसे देश आतंकवादी गुट नहीं मानते। आतंकियों को पालने -पोसने वाले यह देश हमास को आतंकी संगठन मान भी कैसे सकते हैं? नॉर्वे भी हमास को आतंकी संगठन नहीं मानता। वहीं रूस का मानना है कि इजराइल और फिलिस्तीन दोनों को अपने आत्मरक्षा करने का पूरा अधिकार है।

रूस का मानना है कि रक्षा के क्षेत्र में दुनिया का सबसे अत्याधुनिक देश इजराइल। जिसके पास एन्टी टैंक मिसाइल, थल, जल और वायु सभी तरह की सेना है। अगर उसे आत्मरक्षा का अधिकार है तो, फिलिस्तीन को भी आत्मरक्षा का अधिकार है। अगर हम हमास को हटा दें तो फिलिस्तीन के पास आत्मरक्षा के लिए सेना नहीं है। उसके पास अपनी आत्मरक्षा के लिए सिवाय पत्थर और डंडों के फिर क्या बचता है? रूस हमास को आतंकी संगठन नहीं मानना चाहता है। रूस के हिसाब से हमास फिलीस्तीन की जमीन के लिए इजराइल के साथ संघर्ष कर रहा है।

वहीं इजराइल को घेरने की पहल सबसे पहले तुर्की के प्रधानमंत्री तैय्याबुल एर्डोगन ने की थी। तुर्की के प्रधानमंत्री ने आनन-फानन में इस्लामिक देशों की बैठक बुलाई। इस बैठक में 57 इस्लामिक (Islamic) देश शामिल हुए थे। इनका कहना है कि यूएनओ ने 2018 में एक रेसोलुशन पास किया था कि, ‘जेरूसेलम और फिलिस्तीन की सुरक्षा के लिए एक रक्षा संगठन बनाना चाहिए। इन 57 इस्लामिक देशों को मिलकर एक फौज बनानी चाहिए जो इजराइल पर हमले के लिए नहीं बल्कि फिलिस्तीन की रक्षा के लिए हो।

वेस्टर्न बैंक और गाजा (Gaza)पट्टी के कुछ इलाकों को मिलाकर फिलिस्तीन बनता है। इन इस्लामिक देशों का मानना है कि फिलिस्तीन की रक्षा के लिए इन्होंने टर्की (Turkey) को आगे किया। जिसके बाद टर्की ने कहा की, ‘हम हथियार, सर्विलांस रडार और एयरफोर्स दे सकते हैं। वहीं अरब देश जो फिलिस्तीन की रक्षा के लिए संगठन बनेगा उसे पेट्रोल-डीजल उपलब्ध करवा सकते हैं। इसके अलावा फिलिस्तीन के लिए मीडिया का काम अल-जजीरा करेगा।
इस्लामिक देश इजराइल से लड़ने के बनाई जाने वाली सेना के लिए अफ्रीकन देशों से सेना की व्यवस्था करेंगे। जिसके बाद फिलिस्तीन के लिए बनने वाली सेना के लिए टर्की से हथियार, अरब से पैसा, अफ्रीका (Africa) से सेना और मीडिया (Media) का इंतजाम हो जाएगा।

इस आर्मी को फिलिस्तीन में तैनात किया जाएगा। जो इजराइल से फिलिस्तीनियों की रक्षा करेगा। अगर टर्की S-400 मिसाइल को फिलीस्तीन में डिप्लोएड कर देता है तो, इजराइल का एक भी विमान नहीं उड़ पाएगा। भारत भी इस मिसाइल को रूस से खरीद चुका है। यह मिसाइल किसी भी हवाई जहाज को 400 किलोमीटर दूर तक मार गिराने में सक्षम है।
यह इजराइल के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। पर ऐसा होने की संभावना बहुत कम है। क्योंकि इस मसले पर इस्लामिक संगठनों के बीच फूट है।

टर्की, क़तर (Qatar), बहरीन (Baharin) और मोरोक्को (Morocco) जैसे मुस्लिम देशों के इजराइल के साथ काफी अच्छे संबंध है। इसी वजह से इन इस्लामिक देशों के बीच आपसी मतभेद है। इस स्थिति को देखकर बहुत अजीब लगता है। क्योंकि एक तरफ इजराइल अकेला है और दूसरी तरफ 57 इस्लामिक देशों का समूह है। फिर भी इन 57 इस्लामिक देशों की इजराइल के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं हो रही है।

इजराइल की कुल जनसंख्या लगभग 90 लाख है। जिनमें से 70 लाख यहूदी हैं। फिर भी 57 इस्लामिक देशों में रहने वाले 180 करोड़ लोगों की 70 लाख यहूदी आबादी वाले देश इजराइल पर अटैक करने की हिम्मत नहीं हो रही है। दरअसल, इजराइल के स्कूलों में आर्मी ट्रेनिंग पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यहां हर एक बच्चों को स्कूल के दौरान आर्मी की ट्रेनिंग लेना अनिवार्य है। जिसके कारण इजराइल की सेना के साथ-साथ वहां के नागरिक भी युद्ध के दौरान आर्मी की मदद के लिए दुश्मन के साथ लड़ने के लिए तैयार रहते हैं।

इजराइल और फिलीस्तीन के बीच जारी इस लड़ाई को भले लोग जमीन की लड़ाई समझ रहे होंगे। पर इस लड़ाई का सबसे ज्यादा फायदा अमेरिका उठा रहा है। अमेरिका मिडिल ईस्ट देश के तेल भंडारों के बहाने रूस को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है। दरसअल रूस की अर्थव्यवस्था तेल और हथियार पर निर्भर है। अब रूस के हथियार की मांग दुनिया में पहले की तरह नहीं रही। रूस जनता है कि पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ने से उसे सीधा फायदा होगा।

वहीं अमेरिका रूस को कमजोर करने के लिए मिडिल ईस्ट देशों पर प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका जानता है कि मिडिल ईस्ट देशों में शांति रही तो रूस को इसका सीधा फायदा होगा। और इसी वजह से अमेरिक कभी मिडिल ईस्ट देशों में शांति कायम नहीं होने देगा। इसी वजह से मिडिल ईस्ट देशों में कभी ISIS, कभी इराक तो कभी इजराइल-फिलिस्तीन की लड़ाई चलती रहती है। अमेरिका कभी भी इन देशों को रूस के फेवर में नहीं जाने देता है।

अमेरिका मिडिल ईस्ट देशों को हमेशा से इजराइल का डर दिखाता है। क्योंकि इजराइल देश का सपना ग्रेटर इजराइल का है। जो अरब देशों की ज्यादातर भूमि को अपना बताता है। जिसमें ईरान, इराक, इजिप्ट, कतर जैसे देश शामिल हैं। यह डर अमेरिका हमेशा बनाये रखता है ताकि ये देश हमेशा अमेरिका की गुलामी करते रहें। अगर ये देश गलती से भी रूस का समर्थन करते हैं तो अमेरिका इजराइल को खुली छूट दे देगा और फिर इजराइल अरब देशों पर जमीन के लिए हमला कर देगा।

इजराइल हमेशा से कहता रहा है कि उसके देश की सरहद अभी तय नहीं वो समय के साथ बढ़ रही है। अमेरिका ने कभी भी मिडल ईस्ट देशों में ISIS आतंकी संगठन के खात्मे के लिए पूरी ताकत से जोर नहीं लगाया क्योंकि ये आतंकी संगठन तेल भंडारों को लूटकर पैसे कमा रहे थे और पैसे के लिए तेल को सस्ते दाम पर बेच रहा था। तेल सस्ता होने से रूस की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा।

अमेरिका की कंपनियां 8 डॉलर प्रति बैरल की दर से इन आतंकियों से तेल खरीदती थी। अमेरिका इन आतंकियों से भारत रुपयों के मुताबिक मात्र 3.5 लीटर में प्रति लीटर तेल खरीदता था। वहीं इस तेल को महंगी कीमतों पर दूसरे देश को बेच देता था। अमेरिका ने इतने बड़े पैमाने पर तेल का स्टॉक जमा कर लिया है कि अगर कल मिडल ईस्ट देश उसे तेल सप्लाई बंद कर देते हैं तो, उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। अमेरिका अब इलेक्ट्रॉनिक वाहनों पर बड़े तेजी से काम कर रहा है। ताकि मिडिल ईस्ट देशों के तेल के महत्व को कम किया जा सके। सबको पता है कि मिडल ईस्ट का तेल खत्म तो उनका खेल खत्म

ऐसा नहीं है कि इजराइल और फिलिस्तीन हमेशा से दुश्मन रहे थे। साल 1990 में दोनों देशों के रिश्ते सुधरने भी लगे थे। माना जाता है कभी भी किसी भी दो देश के बीच शांति उसके पड़ोसी देश स्थापित करा सकते हैं। इजराइल का इजिप्ट के साथ भी युद्ध हुआ था। जिसमें इजराइल ने इजिप्ट को हरा दिया था और उसकी जमीन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। बाद में दोनों देशों के बीच शांति स्थापित हुई। वहीं इजराइल ने इजिप्ट (Egypt) को जमीन वापस लौटाने का प्रस्ताव भी दिया था। जिसके लिए इजराइल ने इजिप्ट के सामने एक शर्त रखी थी कि, ‘तुम हमारे देश को एक देश के तौरपर मान्यता दो। इजराइल की इस मांग पर दोनों देशों ने रजामंदी दे दी। पर इजिप्ट के जिस प्रधानमंत्री ने दोनों देशों के बीच शांति स्थापित कराई थी। बाद में उसे मरवा दिया गया। आप समझ गए होंगे कि किसने इजिप्ट के प्रधानमंत्री को मरवाया होगा?

जिसके बाद फिलीस्तीन के यासिर अराफात नाम के एक और नेता ने दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने के लिए पहल की थी। उन्होंने कहा था कि, हमारे पास जितना क्षेत्र है हम उसमें खुश रहेंगे और जो तुम्हारे पास है तुम उसमें खुश रहो। जिसके बाद पूरी दुनिया में अराफात की तारीफ भी हुई थी। पर कुछ समय बाद अराफात को भी जहर देकर मार दिया गया।

इसके बाद इजराइल के प्रधानमंत्री रोबिन ने भी दोनों देशों के बीच शांति के लिए कोशिश की थी। उन्होंने जिस देश के पास जितनी जमीन है उसमें खुश रहें और शांति से रहें। दोनों देशों ने सरहद को तय कर लिया। पर इसके बाद रोबिन को भी मार दिया गया। इन तीनों लोगों को शांति स्थापित कराने के लिए नोबल पुरस्कार भी मिला था।

इन हत्याओं की मुख्य वजह इस क्षेत्र में डर खत्म होने से था। अगर युद्ध रुक गया और डर खत्म हो गया तो, हथियार कौन खरीदेगा और हथियारों का धंधा चौपट हो जाएगा। और आप जानते है कि दुनिया में कौनसे देश हथियारों के सबसे बड़े एक्सपोर्टर हैं? एक समय था दोनों देशों के बीच मधुर संबंध कायम हो गए थे। दोनों देशों के लोग एक दूसरे के देश में आने जाने लगे थे। पर यह दोस्ती ज्यादा दिनों तक चली नहीं और दोनों देश फिर से एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। अब दूर दूर तक इजराइल और फिलिस्तीन के बीच दोस्ती की उम्मीद नजर नहीं आ रही है।

इजराइल ने भारत का हमेशा साथ दिया है। कारगिल युद्ध के वक़्त जब अमेरिका ने जीपीएस सिस्टम बंद कर दिया था। तब इजराइल ने हमारा साथ दिया था। इजराइल हमें कई तरह के हथियार मुहैया कराता है। हमारे राडार सिस्टम को विकसित करने में भी इजराइल ने हमारा साथ दिया था। डिफेंस सिस्टम में इजराइल की भारत बहुत ज्यादा मदद करता है। इजराइल के बिना भी भारत कारगिल युद्ध जीतने में सक्षम था। पर इजराइल ने हमेशा हमारा मुश्किल समय में साथ दिया है। लेकिन कारगिल युद्ध में इजराइल ने भारत की बहुत मदद की थी। जिसके लिए भारत इजराइल का हमेशा एहसान मंद रहेगा। भारत के ऐसे कई मित्र हैं जो भारत के मुश्किल वक़्त में साथ देते हैं। जिनमें फ्रांस, अमेरिका और जापान इत्यादि देश शामिल हैं।

पर भारत के सामने ऐसी क्या मजबूरियां हैं कि हिंदुस्तान चाहते हुए भी इजराइल का साथ नहीं दे सकता। क्यों भारत को जेनेवो कंवेक्शन का अनुकरण करना पड़ता है? क्यों भारत को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट और सयुंक्त राष्ट्र को भी देखना है? पर कुछ लोगों को इस लड़ाई के दौरान सिर्फ इजराइल और फिलिस्तीन ही दिखाई देता है। जिसमें कुछ लोग इजराइल का तो कुछ फिलिस्तीन का साथ देते हैं। पर इन्हें यह नहीं समझ आता है कि इनके अलावा भी बहुत बड़ी दुनिया है। जिसमें इंटरनेशनल डिप्लोमेसी पर भी ध्यान देना पड़ता है।

आइये जानते है कि भारत इजराइल का साथ क्यों नहीं दे सकता है? क्योंकि उस जगह पर इजराइल था नहीं, अभी है। पहले वहां फिलिस्तीन था। पहले फिलिस्तीन में यहूदी लोग रहते थे। इसका मतलब यह नहीं होता कि जहां जिस धर्म के लोग रहते हैं, उस धर्म के लिए देश घोषित कर दिया जाए। उदहारण के तौरपर, भारतीय अगर कनाडा में रहते है तो, उसे हिंदुस्तान नहीं घोषित किया जा सकता। यहूदियों को नहीं पता था कभी उनके लिए इजराइल देश बनेगा? यह ठीक उसी तरह है जिस तरह पाकिस्तान का निर्माण हुआ। क्योंकि किसी को कभी मालूम था कि दुनिया में पाकिस्तान नाम का भी कोई देश कभी अस्तित्व में आएगा। भारत की तरह इजराइल में भी धर्म के आधार पर दो देश बनाने की मांग उठी।

दस्तावेजों के मुताबिक उस जगह पर इजराइल के पहले फिलिस्तीन था। अगर भारत वहां इजराइल का अस्तित्व मान लेता है तो, हम अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में फंस जाएंगे और भारत को फंसाने वाला देश कोई और नहीं हमारा पड़ोसी दुश्मन मुल्क पाकिस्तान होगा। फिर पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में खुदके द्वारा पीओके में कब्जाई हुई जमीन पर खुदका दांवा ठोकेगा। वहीं चीन कब्जाए गए सीओके पर अपना दांवा ठोकेगा। जिससे भारत के हाथों से हमेशा के लिए कश्मीर का 40% प्रतिशत हिस्सा चला जायेगा। इसके अलावा भारत चीन द्वारा हड़पे तिब्बत के लिए भी कभी आवाज नहीं उठा पाएगा। चीन और पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में भारत को मिलकर फंसा देगा। कोर्ट में चीन और पाक कहेगा कि भारत ने इजराइल द्वारा कब्जाई हुई जमीन को इजराइल का माना क्योंकि वो भारत का मित्र है। वहीं चीन कोर्ट में कहेगा कि हमने 1959 में तिब्बत पर कब्जा किया था। उसका आप विरोध करते हैं और इजराइल का साथ देते हैं। इस हिसाब से भारत फायदा और नुकसान देखकर समर्थन करता है।

इसके अलावा चीन दक्षिणी चीन सागर पर कब्जा करने की कोशिश करने में लगा हुआ है। अगर भारत ने इजराइल द्वारा हड़पी जमीन का समर्थन किया तो, हम फंस जाएंगे। जिसके बाद चीन का दक्षिणी चीन सागर पर पूरे तरीके से दबदबा बढ़ जाएगा। सागर के इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेट्रोलियम खनिज मौजूद हैं। दक्षिणी चीन सागर के संदर्भ में चीन बहुत पुराने नक्शा का अनुकरण करता है। जिसका नाम नाइन डैश लाइन है। इस नक्शे के तहत दक्षिण चीन सागर के अंदर के सारे द्वीपों को खुदको मानता है। अगर भारत इजराइल का साथ देता है तो, दक्षिण सागर को हड़पने की जुगत में जुटे चीन को बहुत बड़ा फायदा हो जाएगा और भारत के इस स्टैंड से हमारे एक और मित्र जापान हिंदुस्तान से नाराज हो जाएगा। क्योंकि दक्षिणी चीन सागर के द्वीपों के लिए जापान का भी चीन के साथ विवाद चल रहा है।

इजराइल को समर्थन ना करने का भारत का सबसे बड़ा कारण है कि, यूएनओ क्योंकि भारत को यूएनओ की सुरक्षा परिषद में अभस्थायी सदस्यता चाहता है। ताकि हमें भी WETO पावर मिल सके। जैसे चीन, फ्रांस, अमेरिका, रूस और ब्रिटिन को मिला हुआ है। इन पांच देशों को WETO पावर मिला हुआ है। ये देश यूएन में किसी भी प्रस्ताव को रोक सकते हैं। अब तक हमारे देश के पास WETO पावर नहीं है। लेकिन यह हमें कब मिलेगा जब यूएनओ के 193 देशों में से 130 देश यानी दो तिहाई देश हमारा समर्थन करें तब। भारत को 130 देशों का समर्थन जुटाना है। अगर हम इजराइल का साथ देते है तो, दुनिया के 57 इस्लामिक मुल्क हमसे नाराज हो जाएंगे। इसलिए भारत इजराइल को खुश करने के लिए ओआईसी के 57 देशों को नाखुश करने का रिस्क नहीं ले सकता है।

अगर 193 में से ओआईसी के 57 देश निकाल भी देते है तो, फिर भी 136 बचते है। लेकिन इनमें से 130 देशों का साथ मिलना बहुत ज्यादा मुश्किल है। भारत के सामने यही सबसे बड़ी कुछ मजबूरियां हैं। इन्हीं समस्याओं को भारत इजराइल को समझाता है कि हमारी आपसे कोई दुश्मनी नहीं है। हालांकि भारत के ज्यादातर लोग इजराइल का साथ देते हुए नजर आते हैं। पर भारत डायरेक्टली इजराइल का खुले मंच पर कभी समर्थन नहीं कर सकता।

इसके अलावा भी भारत को खुले तौरपर इजराइल के समर्थन ना करने को लेकर कई व्यापारिक कारण हैं। हमें इजराइल के अलावा कई देशों से हथियार मिलते हैं। हमें फ्रांस ने राफेल लड़ाकू विमान और रूस से S 400 मिसाइल मिले हैं। वहीं अमेरिका भी भारत के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध बना रहा है। इजराइल के साथ भारत के व्यापार की बात करें तो सिर्फ 1 प्रतिशत कुल व्यापारिक संबंध का हिस्सा भारत का इजराइल के साथ हैं। अरब देशों के साथ भारत का व्यापारिक संबंध 18 प्रतिशत है।
हम 1 प्रतिशत को खुश करने के लिए 18 प्रतिशत को नाखुश करने का जोखिम नहीं ले सकते।

इजराइल से मिलने वाले हथियार हम किसी और देश से भी इम्पोर्ट कर सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि इजराइल हमें हथियार की सप्लाई करना बंद कर देगा। पर अरब देश नाखुश हो गया तो, हमारे सामने पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की समस्या खड़ी हो सकती है। इसके अलावा अरब के लोग भारत से बड़े पैमाने पर चीजें खरीदते हैं। क्योंकि अरब देशों में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगभग ना के बराबर है। अरब देशों में 55 लाख भारतीयों को डायरेक्ट-इनडाइरेक्ट रोजगार मिलता है। इसी वजह से भारत इतनी सब चीजों को इजराइल को खुश करने के लिए दांव पर नहीं लगा सकता है। इसी वजह से भारत इजराइल का खुलेआम समर्थन नहीं करता है।

वहीं भारत की एक रणनीतिक मजबूरी भी है। अगर भारत मुस्लिम देशों से अच्छे संबंध निर्माण करता है तो, हमारे पड़ोसी दुश्मन मुल्क पाकिस्तान को भी दबा सकते हैं। आपने कुछ समय पहले देखा होगा कि अरब देशों ने पाकिस्तान को भाव देना कम कर दिया है। अरब देशों ने पाकिस्तान को लोन देना बंद कर दिया है और उससे कर्ज लौटाने की भी मांग लगातार की जा रही है।
यह सब भारत की रणनीतिक निति का कमाल है।

अगर यह सब मुल्क पाकिस्तान के साथ आ जाते है तो पाकिस्तान की नापाक गतिविधियों को और ज्यादा बल मिल जाएगा। अरब देश पाकिस्तान को कुछ भी मदद दे तो उनके लिए यह किसी वरदान से कम नहीं होगा। इन पैसों को पाकिस्तान हथियार खरीदने में, सेना को मजबूत करने और आतंकिवादी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करेगा। यह भारत की रणनीतिक नीति का कमाल है कि, ‘अरब देश पाकिस्तान को खड़ा नहीं कर रहे हैं और जिसके कारण पाकिस्तान की छवि मुस्लिमों देशों के बीच भी लगातार गिरती जा रही है। क्योंकि भारत बार-बार मुस्लिम देशों को विश्वास दिलाता है कि हम फिलिस्तीन के मुद्दे पर उनके साथ है। इसी वजह से अरब देश कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान को नजरअंदाज कर देते हैं। वहीं भारत के आंतरिक मामलों में मुस्लिम देश हस्तक्षेप नहीं करते हैं।

इसके अलावा हमारे विस्तारवादी पड़ोसी मुल्क चीन को भी देखना है। क्योंकि चीन अपने देश में उइगर मुस्लिमों पर बेइंतहा अत्याचार करता है। इसी वजह से एशिया के सारे मुस्लिम देश भारत को अच्छे नजर से देखते हैं। चाइना अपनी इसी छवि को सुधारने के लिए मुस्लिमों देश को खुश करने की कोशिश में लगा रहता है। इसी वजह से चीन लगातार इजराइल पर दबाव बना रहा है। पर किसीका भी दबाव इजराइल पर काम नहीं करता है। अमेरिका भी कई बार चीन द्वारा उइगर मुस्लिमों पर अत्याचार करने का मुद्दा दुनिया के सामने उठा चुका है। अभी अमेरिका के इशारे पर फिलिस्तीन में जुल्म हो रहा है। अब चीन इस मुद्दे को उठा रहा है। इस तरह चीन एशिया में मुस्लिमों देशों के लिए नायक बन जाएगा। और हम एशिया में पीछे रह जाएंगे।

इसके अलावा हम इजराइल को समर्थन करें भी क्या? हर मायने में इजराइल भारत से कई गुणा विकसित देश है। इजराइल दुनिया में सबसे पहले कोरोना फ्री मुल्क बना है। वहीं टेक्नोलॉजी के मामले इजराइल के हाथ कोई नहीं पकड़ सकता है। हम इजराइल से टेक्नोलॉजी ले रहे हैं। हम इजराइल से खेती करने के नए-नए और आधुनिक तरीके सीख रहे हैं। हम चाहकर भी इजराइल को कुछ नहीं दे सकते हैं।

एक आम भारतीय के लिए इजराइल को सोशल मीडिया पर सपोर्ट करना बहुत आसान है। पर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को दुनिया के हर एक देश के साथ संबंध को लेकर विचार करना पड़ता है। अगर भारत इजराइल का समर्थन करते है तो, मुस्लिमों देश के साथ इसपर क्या असर पड़ेगा? इन सभी पहलुओं पर भारत को एक राष्ट्र के तौरपर विचार करना पड़ता है।

इजराइल और फिलिस्तीन के बीच की लड़ाई कोई धर्म की नहीं बल्कि जमीन की लड़ाई है। इस लड़ाई में फिलिस्तीनियों का बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है। सन 1947 में फिलिस्तीनियों के पास 100 प्रतिशत भूमि थी। आज फिलिस्तीन सिर्फ 12 प्रतिशत भूमि पर सिमिटकर रह गया है। एशिया के सारे देशों के बीच जारी भूमि विवाद के लिए अंग्रेज जिम्मेदार हैं। इन्होंने अपने फायदे के लिए एशिया के देशों को भूमि के लिए आपस में लड़ा दिया। आज तक एशिया के कई देश सीमा विवाद को लेकर लड़ रहे हैं।

एक समय था जब भारत की सीमा म्यांमार से लेकर अफगानिस्तान तक थी। पहले 1876 में अफगानिस्तान, फिर 1904 में नेपाल, 1906 में भूटान, 1907 में तिब्बत, 1935 में श्री लंका, 1937 में म्यांमार ,1947 में पाकिस्तान और 1972 में बांग्लादेश को अखंड भारत से षड्यंत्र के तौरपर अलग करवा दिया गया। यह ब्रिटिन जैसे मुल्क अपने हथियारों के धंधे को चलाने के लिए दुनिया में हमेशा अशांति बनाये रखना चाहते हैं।

इजराइल और फिलिस्तीन के भूमि विवाद में कुछ हद तक फिलिस्तीनी लोग भी जिम्मेदार है। क्योंकि इन लोगों ने पहले अपनी जमीन यहूदियों को बेची। आतंकी संगठन हमास ने इजराइल पर पहले हमला किया। जिसके बाद इजराइल ने जवाब देते हुए अलजजीरा से लेकर एक हॉटेल तक की इमारत को उड़ा दिया।

वहीं इजराइल हमला कर डर पैदा करता है। हमले से दो घन्टे पहले इजराइल सूचना देता है। जिसके कारण सारे आतंकी वहां से भाग जाते हैं। क्योंकि इजराइल और अमेरिका दोनों देश इस मामले को लंबा चलवाना चाहते हैं। इस तरह यह दोनों देश अरब देशों पर हमेशा दहशत बनाये रखने की कोशिश करते रहते हैं। हमास और इजराइल दोनों देशों के हमले में मासूम लोगों की जान जा रही है। फिलिस्तीन का दो हिस्सा है वेस्टर्न बैंक और गाजा पट्टी। वेस्टर्न बैंक के लोग शांति से रहते हैं। यह शांतिपूर्ण तरीके से इजराइल से अपनी भूमि के लिए मांग करते हैं। पर गाजा पट्टी के लोग इजराइल पर हमला कर अपनी जमीन वापस लेने में लगे हुए हैं। क्योंकि इस क्षेत्र में आतंकी संगठन हमास ऑपरेट करता है। वहीं सिरिया में स्थिति फिलिस्तीन इस्लामिक जिहाद नाम के आतंकी संगठन ने भी इजराइल पर हमला किया था। पर दोनों आतंकी संगठनों को इजराइल ने बुरे तरीके से ठोक दिया।

इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने आगे भी इस तरह की कार्रवाई जारी रखने की चेतावनी दी है। दोनों देश एक दूसरे के अस्तित्व को मानने से इनकार करते हैं और इजराइल की पूरी भूमि को फिलिस्तीन अपना मानता है और फिलिस्तीन की पूरी भूमि को इजराइल अपना बताता है। वहीं भारत सरकार का स्टैंड दोनों देशो के बीच जारी खूनी संघर्ष पर बिल्कुक सही है। भारत दोनों देशों के अस्तित्व को मानता है और किसी भी प्रकार की हिंसा का समर्थन नहीं करता है।

Report by : Rajesh Soni

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